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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. ६ मिथ्यादृष्टि की विकुर्वणा रायगिहे णयरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए णयरीए रूवाइं जाणइ पासइ ? ४ उत्तर-हंता, जाणइ पासइ; तं चेव जाव-तस्स णं एवं भवइएवं खलु अहं वाणारसीए णयरीए समोहए, समोहणित्ता रायगिहे णयरे रूवाइं जाणामि पासामि, से से दंसणे विवच्चासे भवइ, से तेणटेणं जाव-अण्णहाभावं जाणइ पांसइ । ५ प्रश्न-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा माई मिच्छदिट्टी वीरियलद्धीए, वेउन्वियलद्धीए, विभंगणाणलद्धीए वाणारसी णयरी रायगिहं च णयरं अंतरा एगं महं जणवयवग्गं समोहए, समोहणित्ता वाणारसिं गयरिं, रायगिहं च णयरं अंतरा एंगं महं जणवयवग्गं जाणइ पासइ ? ५ उत्तर-हंता, जाणइ पासइ । ६ प्रश्न-से भंते ! किं तहाभावं जाणइ पासइ; अण्णहाभावं जाणइ पासइ ? . ६ उत्तर-गोयमा ! णो तहाभावं जाणइ पासइ; अण्णहाभावं जाणइ पासइ। ७ प्रश्न-से केणटेणं जाव-पासइ ? ७ उत्तर-गोयमा ! तस्स खलु एवं भवइ-एस खलु वाणारसी पयरी, एस खलु रायगिहे णयरे, एस खलु अंतरा एगे महं जण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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