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________________ ६९४ भगवती सूत्र-श. ३ उ. ५ अनगार के अश्वादि रूप नहीं जाता। इसी तरह आत्म-कर्म (आत्म-क्रिया) और आत्म-प्रयोग से जाता है, किन्तु पर-कर्म और पर-प्रयोग से नहीं जाता । वह सीधा (खड़ा) भी जा सकता है और इसे विपरीत (गिरा हुआ) भी जा सकता है। १६ प्रश्न-हे भगवन् ! इस तरह का रूप बनाया हुआ वह भावितात्मा अनगार, क्या अश्व कहलाता है ? १६ उत्तर-हे गौतम ! वह अनगार है, परन्तु अश्व नहीं। इसी तरह यावत् पराशर (शरभ-अष्टापद)तक के रूपों के सम्बन्ध में भी कहना चाहिये । १७ प्रश्न-से भंते ! किं माई विउव्वइ, अमाई वि विउव्वइ ! १७ उत्तर-गोयमा ! माई विउव्वइ, णो अमाई विउव्वइ । १८ प्रश्न-माई णं भंते ! तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालं करेइ, कहिं उववजह ? ___ १८ उत्तर-गोयमा ! अण्णयरेसु आभिओगेसु देवलोएसु देवताए उववजइ। ___ १९ प्रश्न-अमाई णं भंते ! तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कते कालं करेइ, कहिं उववजह ? १९ उत्तर-गोयमा ! अण्णयरेसु अणाभिओगिएसु देवलोएसु देवत्ताए उववजह। -सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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