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________________ भगवती सूत्र-श. ३ उ. ५ अनगार के अश्वादि रूप ६९३ . ___ १५ उत्तर-गोयमा ! आयड्ढीए गच्छइ, णो परिड्ढिए; एवं आयकम्मुणा, णो परकम्मुणा, आयप्पओगेणं, णो परप्पओगेणं । उस्सिओदयं वा गच्छइ, पयओदयं वा गच्छइ । १६ प्रश्न-से णं भंते ! किं अणगारे आसे ? __१६ उत्तर-गोयमा ! अणगारे णं से, णो खलु से आसे; एवं जाव परासररूवं वा। कठिन शब्दार्थ--आसरूवं--अश्वरूप, अभिमुंजित्ता-संयुक्त करके । भावार्थ-१२ प्रश्न-है भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना घोड़ा, हाथी, सिंह, व्याघ्र, वृक (भेडिया) द्वीपी (गेंडा) रीछ, तरच्छ (चीता) और पराशर (शरभ.-अष्टापद) आदि के रूप बना सकता है ? १२ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना उपर्युक्त रूप नहीं बना सकता। ...... १३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुदगलों को ग्रहण करके उपर्युक्त रूप बना सकता है ? १३ उत्तर-हे गौतम ! बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके वह मावितात्मा अनगार उपर्युक्त रूपों को बना सकता है। १४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, एक महान् अंश्व का रूप बनाकर अनेक योजन तक जा सकता है ? १४ उत्तर--हां, गौतम ! वह वैसा कर सकता है। १५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह भावितात्मा अनगार, आत्म ऋद्धि से जाता है, या परऋद्धि से जाता है ? १५ उत्तर-हे गौतम ! आत्मऋद्धि से जाता है, किन्तु. परऋद्धि से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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