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भगवती सूत्र-श. ३ उ. ५ अनगार के अश्वादि रूप
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___ १५ उत्तर-गोयमा ! आयड्ढीए गच्छइ, णो परिड्ढिए; एवं आयकम्मुणा, णो परकम्मुणा, आयप्पओगेणं, णो परप्पओगेणं । उस्सिओदयं वा गच्छइ, पयओदयं वा गच्छइ ।
१६ प्रश्न-से णं भंते ! किं अणगारे आसे ? __१६ उत्तर-गोयमा ! अणगारे णं से, णो खलु से आसे; एवं जाव परासररूवं वा।
कठिन शब्दार्थ--आसरूवं--अश्वरूप, अभिमुंजित्ता-संयुक्त करके ।
भावार्थ-१२ प्रश्न-है भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना घोड़ा, हाथी, सिंह, व्याघ्र, वृक (भेडिया) द्वीपी (गेंडा) रीछ, तरच्छ (चीता) और पराशर (शरभ.-अष्टापद) आदि के रूप बना सकता है ?
१२ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना उपर्युक्त रूप नहीं बना सकता। ...... १३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुदगलों को ग्रहण करके उपर्युक्त रूप बना सकता है ?
१३ उत्तर-हे गौतम ! बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके वह मावितात्मा अनगार उपर्युक्त रूपों को बना सकता है।
१४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, एक महान् अंश्व का रूप बनाकर अनेक योजन तक जा सकता है ?
१४ उत्तर--हां, गौतम ! वह वैसा कर सकता है।
१५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह भावितात्मा अनगार, आत्म ऋद्धि से जाता है, या परऋद्धि से जाता है ?
१५ उत्तर-हे गौतम ! आत्मऋद्धि से जाता है, किन्तु. परऋद्धि से
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