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________________ भगवती सूत्र-श. ३ उ. ४ अनगार की वैक्रिय शक्ति ६७१ संजोएयव्वं, एवं कंदेण वि समं संजोएयव्वं जाव-बीयं । एवं जावपुप्फेण समं बीयं संजोएयव्वं । ५ प्रश्न-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स किं फलं पासइ, बीयं पासइ ? . ५ उत्तर-चउभंगो। कठिन शब्दार्थ-भावियप्पा-भावितात्मा-संयम और तप से आत्मा को प्रभावित रखने वाले, समुग्धाएणं-समुद्घात-एकाग्रता युक्त प्रयत्न, जाणरूघेणं-यान रूप से, जायमाणं-जाते हुए, अत्लेगइए-कोई एक, अभिलावेणं-अभिलाप से-कथन से, चउभंगो-चतुभंग, संजोएयव्वं-संयोग करना । ___ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, वैक्रिय समुद् घात से समवहत होकर यान रूप से जाते हुए देव को जानते और देखते हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! कोई तो देव को देखते हैं, किन्तु यान को नहीं देखते हैं; कोई यान को देखते हैं, किन्तु देव को नहीं देखते हैं; कोई देव को भी देखते है और यान को भी देखते हैं और कोई देव को भी नहीं देखते और यान को भी नहीं देखते है। ___ २ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, वैक्रिय समुद्घात से समवहत यान रूप से जाती हुई देवी को जानते और देखते हैं ? ___ २ उत्तर-हे गौतम ! जैसा देव के विषय में कहा, वैसा ही देवी के विषय में भी जानना चाहिए। ३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, वैक्रिय समुद्घात से समवहत यान रूप से जाते हुए देवी सहित देव को जानते और देखते हैं ? __३ उत्तर-हे गौतम ! कोई तो देवी सहित देव को देखते हैं, परन्तु यान को नहीं देखते हैं । इत्यादि चार भंग कहना चाहिए। ४ प्रश्न- हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, वृक्ष के आन्तरिक भाग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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