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भगवती सूत्र - श. ३ उ. ३ जीव की एजनादि क्रिया
१४ प्रश्न - जावं च णं भंते! से जीवे नो एयइ जाव - णो तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवइ ?
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१४ उत्तर - हंता, जाव - भवइ ।
१५ प्रश्न - से केणट्टेणं जाव - भवइ ?
१५ उत्तर - मंडियपुत्ता ! जावं च णं से जीवे सया समियं णो एयह, जाव णो परिणमइ, तावं च णं से जीवे णो आरंभइ, णो सारंभइ, णो समारंभइ; णो आरंभे वट्टह, णो सांरंभे वट्टह, णो समारंभे वट्ट; अणारंभमाणे, असारंभमाणे, असमारंभमाणे; आरंभे अवट्टमाणे, सारंभे अवट्टमाणे, समारंभे अवट्टमाणे बहूणं पाणाणं, भूयाणं, जीवाणं, सत्ताणं अदुक्खावणयाए, जाव - अपरितावणयाए वट्टइ ।
कठिन शब्दार्थ - अणारंभमाणे- आरंभ नहीं करता हुआ, अवट्टमाणे – प्रवृत्ति नहीं करता हुआ ।
भावार्थ - १३ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या जीव, सदा समित रूप से नहीं कंपता हैं, यावत् उन उन भावों में परिणत नहीं होता है ?
१३ उत्तर - हे मण्डितपुत्र ! हाँ, जीव, सदा समित नहीं कंपता है, यावत् उन उन भावों को नहीं परिणमता है अर्थात् जीव, निष्क्रिय होता है ।
१४. प्रश्न - हे भगवन् ! जब तक वह जीव, सदा समित नहीं कंपता है, यावत् उन उन भावों को नहीं परिणमता है, तब तक उस जीव की मरण समय में अन्तक्रिया (मुक्ति) होती है ?
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