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भगवती सूत्र - श. ३ उ. ३ कायिकी आदि पाँच क्रिया
४ उत्तर - मंडियपुत्ता ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - जीवपाओसिया य, अजीवपाओसिया य ।
५ प्रश्न - पारियावणिया णं भंते! किरिया कइविहा पण्णत्ता ? ५ उत्तर - मंडियपुत्ता ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सहत्थपारियावणिया य, परहत्थपारियावणिया य ।
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६ प्रश्न - पाणावायकिरिया णं भंते ! कहविहा पण्णत्ता ? ६ उत्तर - मंडियपुत्ता ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सहत्थपाणाइवायकिरिया य, परहत्थपाणाइवायकिरिया य ।
कठिन शब्दार्थ - काइया- कायिकी, अहिगरणिया-आधिकरणिकी, पाओसिआ-प्राषिकी, पारियावणिया – पारितापनिकी, पाणाइवाय किरिया -- प्राणातिपातिकी क्रिया, अणुवरयकायकिरिया -- अनुपरत - अविरत काय क्रिया, दुप्पउत्तकार्याकिरिया - दुष्प्रयुक्त काय क्रिया, संजोयणाहिगरणया - पृथक् रहे हुए अधिकरण के हिस्सों को जोड़ना, निवत्तणाहिगरणया-नये अधिकरण बनाना ।
भावार्थ - उस काल उस समय में राजगृह नामका नगर था, यावत् परिषद् धर्मकथा सुन कर वापिस चली गई । उस काल उस समय में भगवान् के अन्तेवासी मण्डितपुत्र नामक अनगार ( भगवान् के छठे गणधर ) प्रकृति भद्र अर्थात् भद्र स्वभाववाले थे, यावत् पर्युपासना करते हुए वे इस प्रकार बोले
१ प्रश्न - हे भगवन् ! क्रियाएँ कितनी कही गई हैं ?
१ उत्तर - हे मण्डितपुत्र ! क्रियाएँ पाँच कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं— कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी क्रिया |
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२ प्रश्न - हे भगवन् ! कायिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है ? २ उत्तर - हे मण्डितपुत्र ! कायिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है ।
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