SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. २ चमरेन्द्र का उत्पात वंदित्ता णमंसित्ता, उत्तरपुरस्थिमयं दिसीभागं अवक्कमइ, वामेणं पादेणं तिक्खुत्तो भूमिं दलेइ, चमरं असुरिंदं असुररायं एवं वयासी" मुक्को सिणं भो चमरा ! असुरिंदा ! असुरराया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स पभावेणं-ण हि ते इयाणिं ममाओ भयं अस्थि त्ति कट्टु जामेव दिसिं पाउ भए तामेव दिसिं पडिगए । ६३५ कठिन शब्दार्थ - अच्चासायणाए - अत्यन्त आशातना, हतो अहमंसि- मैं मारा गया, चउरंगुलमसंपत्तं - पास पहुंचने में चार अंगुल की दूरी रही, वज्जस्स वीहिं-व - वज्र के रास्ते, मुट्ठिवाएणं केसग्गे वीइत्था - मुट्ठी के वायु से मेरे केशाग्र हिले, परिकुविएणं- विशेष कुपित होकर, सिट्ठे - फेंका, खमंतुमरहंति क्षमा करने योग्य हैं, भूमि दलेइ - पृथ्वी पर ठोका, मुक्की - मुक्त है। - Jain Education International भावार्थ - उसी समय देवेन्द्र देवराज शक को इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ कि असुरेन्द्र असुरराज चमर का इतना सामर्थ्य, इतनी शक्ति और इतना विषय नहीं है कि वह अरिहन्त भगवान्, अरिहन्त चैत्य या किसी भावि - तात्मा अनगार का आश्रय लिये बिना स्वयं अपने आप सौधर्म कल्प तक ऊंचा आ सकता है । इसलिए यदि यह चमरेन्द्र किसी अरिहन्त भगवान् यावत् भावि - तात्मा अनगार का आश्रय लेकर यहाँ आया है, तो उन महापुरुषों की आशातना मेरे द्वारा फेंके हुए वज्र से होगी। यदि ऐसा हुआ, तो यह मुझे महान् दुःख रूप होगा । ऐसा विचार कर शकेन्द्र ने अवधिज्ञान का प्रयोग किया और उससे मुझे (श्री महावीर स्वामी को ) देखा । मुझे देखते ही उसके मुख से ये शब्द निकल पडे कि- " हा ! हा !! में मारा गया ।" ऐसा कह कर वह शक्रेन्द्र, अपने वज्र को पकड़ लेने के लिये उत्कृष्ट तीव्र गति से वज्र के पीछे चला । वह शक्रेन्द्र, असंख्येय द्वीप समुद्रों के बीचोबीच होता हुआ यावत् उस उत्तम अशोक वृक्ष के नीचे जहाँ मैं था उस तरफ आया और मेरे से सिर्फ चार अंगुल दूर रहे हुए वज्र को पकड़ लिया । हे गौतम ! जिस समय शक्रेन्द्र ने वज्र को पकड़ा उस समय For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy