SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. ३ उ. २ चमरेन्द्र का उत्पात ६३३ से भी अत्यधिक दीप्ति वाले, अत्यन्त वेगवान्, किंशुक (टेसु) के फूल के समान लाल, महाभयावह भयंकर वज्र को चमरेन्द्र के वध के लिए छोड़ा। इस प्रकार के जाज्वल्यमान यावत् भयंकर वज्र को चमरेन्द्र ने अपने सामने आता हुआ देखा । देखते ही वह विचार में पड़ गया कि 'यह क्या है ?' तत्पश्चात् वह बार बार स्पृहा करने लगा कि-'ऐसा शस्त्र मेरे पास होता, तो कैसा अच्छा होता ?' ऐसा विचार कर जिसके मुकुट का छोगा (तुर्रा) भग्न हो गया है ऐसा तथा आलंबवाले हाथ के आभूषणवाला वह चमरेन्द्र, ऊपर पैर और नीचे शिर करके, कांख (कक्षा) में आये हुए पसीने की तरह पसीना टपकाता हुआ वह उत्कृष्ट गति द्वारा यावत् तिरछे असंख्येय द्वीप समुद्रों के बीचोबीच होता हुआ जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के संसुमारपुर नगर के अशोक वनखण्ड उदयान में उत्तम अशोक वृक्ष के नीचे पृथ्वीशिलापट्ट पर जहाँ मैं (श्री महावीर स्वामी) था, वहाँ आया। भयभीत बना हुआ, भय से कातर स्वर वाला-'हे भगवन् ! आप मेरे लिए शरण हैं।' ऐसा कह कर वह चमरेन्द्र, मेरे दोनों पैरों के बीच में गिर पड़ा अर्थात् छिप गया । तएणं तस्स सकस्स देविंदस्स देवरण्णो इमेयारूवे अझथिए, जाव-समुप्पजित्था-"णो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया, णो खलु समत्थे चमरे असुरिंदे असुरराया, णो खलु विसए चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो अप्पणो णिस्साए उड्ढं उप्पइत्ता जाव सोहम्मो कप्पो, णण्णत्थ अरिहंते वा, अरिहंतचेइयाणि वा, अण गारे वा भाविअप्पणो णीसाए उड्ढं उप्पयइ जाव-सोहम्मो कप्पो, • तं महादुक्खं खलु तहारूवाणं अरिहंताणं भगवंताणं, अणगाराण य अचासायणाए त्ति कट्टु ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता ममं ओहिणा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy