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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. २ चमरेन्द्र का उत्पात तथा वे करोडों अप्सराएँ कहाँ हैं ? आज में उनका हनन करता हूँ। जो अप्स - राएँ अब तक मेरे वश में नहीं थीं, वे आज मेरे वश में हो जावें ।" ऐसा करके चमरेन्द्र ने इस प्रकार के अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, असुन्दर, अमनोम ( अमनोहर) और अमनोज्ञ शब्द कहे । Jain Education International ६३१ तणं से सक्के देविंदे देवराया तं अणिट्टं जाव- अमणामं असुयपुव्वं फरुसं गिरं सोच्चा, णिसम्म आसुरुते, जाव - मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिडं णिडाले साहट्टु चमरं असुरिंदं असुररायं एवं वयासी - "हं भो ! चमरा ! असुरिंदा ! असुरराया ! अपत्थियपत्थया ! जाव - हीणपुण्णचाउदसा ! अज्ज न भवसि न हि ते सुहमत्थीति कट्टु तत्थेव सीहासणवरगए वज्जं परा मुसह, परामुंसित्ता, तं जलतं, फुडतं, तडतडतं उक्कासहस्साइं विणिम्मुयमाणं, जालासहस्साई पहुंचमाणं इंगालसहस्साई पविक्खिरमाणं पविक्खिरमाणं, फुलिंगजालामालासहस्सेहिं चक्खुविक्खेवदिट्ठिपडिघायं पिपकरेमाणं हुयवहअइरेगतेयदिप्पंतं, जइणवेगं फुल्लकिंसुयसमाणं, महव्भयं भयंकरं चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो वहाए वज्जं निसिर । तपणं से असुरिंदे असुरराया तं जलंतं, जाव-भयंकरं वज्जमभिमुहं आवयमाणं पासइ, पासित्ता झियाइ, पिहाइ, झियायित्ता पिहाइत्ता तहेव संभग्गमउडविडए, सालंबहत्था भरणे, उडूढपाए, अहोसिरे, कक्खा - गतेअपि विणिम्यमाणे विणिम्मुयमाणे ताए उक्किट्टाए, जाव For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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