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________________ ६३० भगवती सूत्र-श. ३ उ. २ चमरेन्द्र का उत्पात . कोण में चला गया। फिर उसने वैक्रिय समुद्घात किया यावत् वह दूसरी बार भी वैक्रिय समुद्घात द्वारा समवहत हुआ। ऐसा करके चमरेन्द्र ने एक महान घोर, घोर आकृतिवाला, भयंकर, भयंकर आकृतिवाला, भास्वर, भयानक, गंभीर त्रासजनक, कृष्णपक्ष की अर्द्धरात्रि तथा उड़दों के ढेर के समान काला, एक लाख योजन का ऊँचा मोटा शरीर बनाया। ऐसा करके वह चमरेन्द्र अपने हाथों को पछाड़ने लगा, उछलने कूदने लगा, मेघ की तरह गर्जना करने लगा, घोडे की तरह हिनहिनाने लगा, हाथी की तरह चिंघाड़ने लगा, रथ की तरह घनघनाहट करने लगा, भूमि पर पैर पटकने लगा। भूमि पर चपेटा मारने लगा, सिंहनाद करने लगा, उछलने लगा, पछाड़ मारने लगा, त्रिपदी छेदने लगा, बाँई भुजा को ऊँचा करने लगा, दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली और अंगूठे के नख द्वारा अपने मुंह को विडंबित करने लगा (टेढ़ा मेढ़ा करने लगा) और महान् शब्दों द्वारा कलकल शब्द करने लगा। इस प्रकार करता हुआ मानो अधोलोक को क्षुभित करता हुआ, भूमितल को कम्पाता हुआ, तिरछा लोक को खींचता हुआ, गगनतल को फोड़ता हुआ, इस प्रकार करता हुआ वह चमरेन्द्र, कहीं गर्जना करता हुआ, कहीं बिजली की तरह चमकता हुआ, कहीं वर्षा के सदृश बरसता हुआ, कहीं पर धूलि की वर्षा करता हुआ, कहीं पर अन्धकार करता हुआ वह चमर ऊपर जाने लगा। जाते हुए उसने वाणव्यन्तर देवों को त्रासित किया, ज्योतिषी देवों के दो विभाग कर दिये और आत्मरक्षक देवों को भगा दिया। ऐसा करता हुआ वह चमरेन्द्र परिध रत्न को फिराता हुआ (घुमाता हुआ) शोभित करता हुआ, उस उत्कृष्ट गति द्वारा यावत् तिरछे असंख्येय द्वीप समुद्रों के बीचोंबीच होकर निकला। निकल कर सौधर्मकल्प के सौधर्मावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में पहुंचा। वहां पहुंच कर उसने अपना एक पैर पद्मवर वेदिका के ऊपर रखा और दूसरा पैर सुधर्मा सभा में रखा । महान् हुंकार शब्द करते हए उसने अपने परिध रत्न द्वारा इन्द्रकील को तीन बार पीटा । फिर उसने चिल्ला कर कहा कि-"वह देवेन्द्र देवराज शक्र कहां है ? वे चौरासी हजार ' सामानिक देव कहां हैं ? वे तीन लाख छत्तीस हजार आत्मरक्षक देव कहां है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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