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भगवती सूत्र - श. ३ उ. २ चमरेन्द्र का पूर्व भव
एडेइ, एडित्ता वेभेलस्स सण्णिवेसस्स दाहिणपुरथिमे दिसीभागे अद्धणियत्तणियमंडलं आलिहित्ता सलेहणासणाासिए, भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं णिवण्णे। ___ कठिन शब्दार्थ -चउप्पुडयं - चार पुट-चार खानावाला, दाणामा-'दानामा' नामक एक तापस प्रव्रज्या, पहियाणं-पथिक, काग-सुणयाणं-कौए और कुत्ते ।
भावार्थ-२१ प्रश्न-हे भगवन् ! अमरेन्द्र असुरराज चमर को वह दिव्य देवऋद्धि यावत् किस प्रकार लब्ध हुई-मिली, प्राप्त हुई और अभिसमन्वागत हुईसम्मुख आई ?
२१-उत्तर-हे गौतम ! उस काल उस समय में इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में विन्ध्याचल पर्वत की तलहटी में 'बेभेल' नामक सन्निवेश था। वहां 'पूरण' नाम का एक गृहपति रहता था । वह आढ्य और दीप्त था । (उसका सब वर्णन तामली की तरह जानना चाहिए।) उसने भी समय आने पर किसी समय तामली के समान विचार कर कुटुंब का सारा भार अपने ज्येष्ठ पुत्र को संभला दिया। फिर चार खण्ड वाला लकडी का पात्र लेकर, मुण्डित होकर 'दानामा' नामक प्रव्रज्या अंगीकार की। (यहां सारा वर्णन पहले की तरह समझना चाहिए) यावत् बेले के पारणे के दिन वह आतापना की भूमि से नीचे उतरा। स्वयं लकडी का चार खण्ड वाला पात्र लेकर 'बेभेल' नाम के सन्निवेश में ऊँच, नीच और मध्यम कुलों में मिक्षा की विधि से भिक्षा के लिये फिरा और भिक्षा के चार विभाग किये । पहले खण्ड में जो भिक्षा आवे वह मार्ग में मिलने वाले पथिकों को बाँट दी जाय, किंतु उसमें से स्वयं कुछ नहीं खाना । दूसरे खण्ड में जो भिक्षा आवे वह कौए और कुत्तों को खिला दी जाय और तीसरे खण्ड में जो भिक्षा आवे वह मछलियों और कछुओं को खिला दो जाय और चौथे खण्ड में जो भिक्षा आवे वह स्वयं आहार करना । पारणे के दिन मिली हुई भिक्षा का इस प्रकार विभाग करके वह पूरण बाल तपस्वी विचरता था।
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