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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. २ चमरेन्द्र का पूर्व भव २० प्रश्न - अहो णं भंते ! चमरे, असुरिंदे, असुरकुमारराया महिड्डिए, महज्जुईए, जाव कहिं पविट्ठा ? २० उत्तर - कूडागारसालादिट्टंतो भाणियव्वो । कठिन शब्दार्थ - उप्पइयपुव्वि - पहले ऊँचा गया था ? दिट्ठतो- दृष्टान्त । भावार्थ - १८ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या सभी असुरकुमार देव, सौधर्म कल्प तक ऊपर जाते हैं ? १८ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् सभी असुरकुमार देव ऊपर नहीं जाते हैं, किन्तु महाऋद्धि वाले असुरकुमार देव ही यावत् सौधर्म कल्प तक ऊपर जाते हैं । ६१७ १९ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या यह असुरेन्द्र असुरराज चमर भी पहले किसी समय ऊपर यावत् सौधर्म कल्प तक गया था ? १९ उत्तरर-हाँ, गौतम ! गया था । २० प्रश्न - हे भगवन् ! आश्चर्य है कि असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महाऋद्धि वाला है, ऐसी महाद्युति वाला है, तो हे भगवन् ! वह दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकान्ति, दिव्य देव प्रभाव कहाँ गया ? कहाँ प्रविष्ट हुआ ? २० उत्तर - हे गौतम! पूर्व कथितानुसार यहाँ पर भी कूटाकारशाला का दृष्टान्त समझना चाहिए। यावत् वह दिव्य देवप्रभाव, कूटाकारशाला के दृष्टान्तानुसार चमरेन्द्र के शरीर में गया और शरीर में ही प्रविष्ट हो गया । चमरेन्द्र का पूर्व भव २१ प्रश्न - चमरेण भंते ! असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्वा देविड्ढी, तं चैव जाव - किण्णा लद्धा, पत्ता, अभिसमण्णागया ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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