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भगवतीसूत्र-श. १ उ. १ बेइन्द्रिय जीवों का वर्णन
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३८ प्रश्न-बेइंदिया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गिण्हंति, ते णं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुजो भुजो परिणमंति ?
३८ उत्तर-गोयमा ! जिभिदिय-फासिंदियवेमायत्ताए भुजो भुजो परिणमंति।
३९ प्रश्न-बेइंदियाणं भंते ! पुव्वाहारिया पोग्गला परिणया ? . ३९ उत्तर-तहेव जाव णो अचलियं कम्मं णिज्जतं । ।
शब्दार्थ-बेइंदियाणं-बेइन्द्रिय जीवों की, ठिई-स्थिति, भाणियव्वा-कह देनी चाहिए, उस्सासो- उनका श्वासोच्छ्वास, वेमायाए–विमात्रा से कहना चाहिए।
बेइंदियाणं-बेइन्द्रिय जीवों के, आहारे-आहार के विषय में, पुच्छा-प्रश्न करना चाहिए । अर्थात् हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीव को कितने काल में आहार की अभि-: लाषा होती है ?
अणाभोगणिव्वत्तिए-अनाभोगनिर्वतित आहार, तहेव-पहले के समान समझना चाहिए । जे–जो, आधोगणिन्वत्तिए-आभोग निर्वतित आहार है, से-उस, आहारठेआहार की अभिलाषा, वेमायाए-विमात्रा से, असंखेन्ज समइए अंतोमुहुत्तिए-असंख्यात समय वाले अन्तर्मुहूर्त में होती है। सेसं-बाकी, तहेव - उसी प्रकार जानना चाहिए, जाव-यावत्, अणंतभागं-अनन्तवें भाग को, आसायंति—आस्वादन करते हैं ।
भंते-हे भगवन् ! बेइंदिया-बेइन्द्रिय जीव, जे-जिन, पोग्गले–पुद्गलों को, आहारत्ताए-आहार रूप से, गिण्हंति-ग्रहण करते हैं, कि-क्या, वे, ते-उन, सव्वेसबको, आहारंति–खा जाते हैं ? अथवा, णो सव्वे आहारंति-उन सबको नहीं खाते हैं ?
गोयमा-हे गौतम ! बेइंदियाणं-बेइन्द्रिय जीवों का, आहारे-आहार, दुविहे-दो प्रकार का, पण्णत्ते-कहा गया है । तंजहा-वह इस प्रकार है-लोमाहारे-रोमाहार, य-और पक्खेवाहारे-प्रक्षेपाहार । जे-जिन, पोग्गले-पुद्गलों को, लोमाहारत्ताए-वे रोमाहार द्वारा, गिव्हंति-ग्रहण करते हैं, ते सम्वे-उन सबको, अपरिसेसिए-सम्पूर्णपने, आहारेंति-खा जाते हैं । जे-जिन पुद्गलों को, पक्खेवाहारत्ताए-प्रक्षेपाहार रूप से, गिण्हंति-ग्रहण करते हैं, तेसि पोग्गलाणं- उन पुद्गलों को, असंखिज्जइभागं-असंख्यातवां भाग, आहारेंति-खाया
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