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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. १ असुरकुमार देवों का वर्णन ५७ कृत्स्नर्देशः स्वकदेशस्थं, रागादिपरिणतो योग्यम् । बध्नाति योगहेतोः कर्म स्नेहाक्त इव च मलम् ॥ अर्थात्-जिस प्रकार जिस पुरुष के शरीर पर तेल आदि चिकना पदार्थ लगा हुआ हो वह मैल को संग्रह करता है अर्थात् धूल आदि उसके शरीर पर चिपकते हैं, उसी प्रकार रागादि में परिणत आत्मा मन, वचन, काया रूपी योगों के निमित्त से समस्त आत्मप्रदेशों द्वारा आत्मा के समीप योग्य देश में रहे हए कर्मों को बाँधता है। जिस प्रकार बन्ध का कथन किया-उसी प्रकार उदीरणा, वेदन, अपवर्तन, संक्रमण, निधत्त और निकाचन कर्म का भी कथन करना चाहिए अर्थात् उदीरणा, वेदन, अपवर्तन, संक्रमण, निधत्त और निकाचन, ये सब अचलित कर्म के होते हैं, चलित के नहीं। . निर्जरा चलित कर्म की होती है, अचलित की नहीं । आत्मप्रदेशों से कर्म पुद्गलों को हटा देना निर्जस कहलाती है। अचलित कर्म आत्मप्रदेशों से हटते नहीं हैं, चलित कर्म ही हटते हैं । इसलिए निर्जरा चलित कर्म की होती है, अचलित कर्म की नहीं। इन आठ प्रश्नों की संग्रह गाथा में भी यही बात कही गई है । बंध, उदीरणा, वेदन, अपवर्तन, संक्रमण, निधत्त और निकाचित इन सात प्रश्नों में अचलित कर्म कहना चाहिए और आठवें निर्जरा सम्बन्धी प्रश्न में चलित कर्म कहना चाहिए। असुरकुमार देवों का वर्णन १६ प्रश्न-असुरकुमाराणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता ? १६ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं उक्कोसेणं साइरेगं सागरोवमं । १७ प्रश्न-असुरकुमारा णं भंते ! केवइयकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ? १७ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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