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भगवतीसूत्र श. १ उ. १ काल चलितादि सूत्र
की उदीरणा करते हैं अथवा अचलित कर्म की उदीरणा करते हैं ?
१४ उत्तर - हे गौतम ! नारकी जीव चलित कर्म की उदीरणा नहीं करते, किन्तु अचलित कर्म की उदीरणा करते हैं । इसी प्रकार वेदन करते हैं, अपवर्तन करते हैं, संक्रमण करते हैं; निघत्त करते हैं और निकाचित करते हैं। इन सब पदों में 'अचलित' कहना चाहिए, चलित नहीं ।
१५ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या नारकी जीव, जीव- प्रदेश से चलित कर्म की निर्जरा करते हैं ? या अचलित कर्म की निर्जरा करते हैं ?
१५ उत्तर - हे गौतम! नारको जीव, जीब- प्रदेश से चलित कर्म की निर्जरा करते हैं, किन्तु अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते हैं।
गाया का अर्थ-बन्ध, उदय, वेदन, अपवर्तन, संक्रमण, निघत्तन और निकाचन के विषय में अचलित कर्म समझना चाहिए और निर्जरा के विषय में चलित कर्म समझना चाहिए।
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विवेचन - यहाँ भूत, भविष्य और वर्तमान इन तीनों कालों के साथ 'समय' विशेषण लगाया गया है अर्थात् काल और समय, इन दो पदों का प्रयोग किया गया है। इसका कारण यह है कि 'काल' शब्द के अनेक अर्थ हैं। अकेले 'काल' शब्द का प्रयोग करने से काला (कृष्ण) वर्ण अर्थ भी लिया जा सकता है । किन्तु यहां ऐसा अर्थ इष्ट नहीं है । यह ain प्रकट होने के लिए काल के साथ 'समय' विशेषण लगा दिया गया है । 'काल' शब्द की तरह 'समय' शब्द के भी अनेक अर्थ हैं। वे सब यहाँ इष्ट नहीं हैं, किन्तु काल रूप ‘समय' इष्ट हैं । इसलिए 'समय' के साथ 'काल' विशेषण लगा दिया 'काल' का विशेषण 'समय' और 'समय' का विशेषण 'काल' कह देने से भ्रम नहीं रहता और इष्ट अर्थ सरलता से समझ में आ सकता है ।
है । इस प्रकार किसी प्रकार का
यहाँ अतीत काल के साथ में जो 'समय' शब्द का प्रयोग किया गया है, इसका for यह है कि यहाँ अतीत काल सम्बन्धी उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल न लेकर अतीत काल का छोटे से छोटा अंश लेना है ।
गौतम स्वामी का प्रश्न है कि नारकी जीव जिन पुद्गलों को तैजस और कार्मण शरीरपने ग्रहण करते हैं। क्या उन्हें अतीत काल में ग्रहण करते हैं ? वर्तमान काल में ग्रहण करते हैं या भविष्यकाल में ग्रहण करते हैं ?
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