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भगवतीसूत्र-श. १ उ. १ नारकों के भेद चयादि सूत्र
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प्राप्त हुए, उदीरणा को प्राप्त हुए, बेदे गये और निर्जीर्ण हुए। उद्वर्तन अप वर्तन, संक्रमण, निधत्तन और णिकाचन, इन चार पदों में भूत, भविष्य और वर्तमान ये तीनों काल कहने चाहिए।
- विवेचन-नरक के जीव पुद्गल का आहार करते हैं । यह बात बतलाई जा चुकी है । पुद्गल का अधिकार होने से अब पुद्गल का कथन किया जाता है
गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि-हे भगवन् ! नारकी जीव कितने प्रकार के पुद्गलों को भेदते हैं ?
- इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् फरमाते हैं कि हे गौतम ! कर्म द्रव्य वर्गणा की अपेक्षा से दो प्रकार के पुद्गलों को नारकी जीव भेदते हैं । वे दो प्रकार के पुद्गल ये हैं-अणु (सूश्म) और बादर (स्थूल) अर्थात् अपनी अपनी वर्गणा की अपेक्षा छोटे और बड़े।
सामान्य रूप से पुद्गलों में तीन प्रकार का रस होता है-तीव्र, मध्यम और मन्द । यहाँ भेदने का अर्थ है-इन रसों में परिवर्तन करना । जीव अपने उदवर्तना करण (मध्यवसाय विशेष) द्वारा मन्द रस वाले पुद्गलों को मध्यम या तीव्र रस वाले और मध्यम रस वाले पुद्गलों को तीव्र रस वाले बना डालता है। उसी प्रकार अपवर्तनाकरण (अध्यवसाय विशेष ) द्वारा तीव्र रस वाले पुद्गलों को मध्यम या मन्द रस वाले और मध्यम रस वाले पुद्गलों को मन्द रस वाले बना डालता है। जीव अपने अध्यवसाय द्वारा ऐसा परिवर्तन करने में समर्थ है।
___समान जाति वाले द्रव्य के समूह को वर्गणा' कहते हैं। द्रव्य वर्गणा औदारिक आदि द्रव्य की भी होती है, किन्तु उनका यहाँ ग्रहण नहीं किया गया है । उन औदारिक आदि द्रव्य वर्गणाओं का ग्रहण न हो, इसीलिए मूल में 'कम्मदव्ववग्गणं' पद दिया है । इस पद से सिर्फ कार्मण द्रव्यों की वर्गणा का ही ग्रहण होता है और औदारिक वर्गणा, तेजस वर्गणा आदि दूसरी वर्गणाओं का निषेध हो जाता है। कर्म द्रव्य वर्गणा का अर्थ है-कार्मण जाति के पुद्गलों का समूह । वास्तव में कार्मण जाति के पुद्गलों में ही यह धर्म है कि वे तीव्र रस से मध्यम और मन्द रस वाले तथा मन्द रस से मध्यम और तीव्र रस वाले हो सकते हैं। इसीलिए यहाँ अन्य वर्गणाओं को छोड़कर कार्मण द्रव्य वर्गणा को ही ग्रहण किया गया है। - यहाँ कर्म द्रव्यों को अणु और बादर बताया गया है, सो इनका अणुत्व (सूक्ष्मता) और बादरत्व (स्थूलता) कर्म द्रव्यों की अपेक्षा ही समझना चाहिए । क्योंकि औदारिक
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