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________________ भगवतीसूत्र-श. १ उ. १ नारक जीवों का वर्णन किया जाता हैं । श्री गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से प्रश्न किया है कि हे भगवन् ! नरक योनि के जीवों की स्थिति • कितनी है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने फरमाया कि-स्थिति दो प्रकार की होती है-जघन्य और उत्कृष्ट । कम से कम को जघन्य कहते है और अधिक से अधिक को उत्कृष्ट कहते हैं। जहाँ जघन्य और उत्कृष्ट होता है वहाँ मध्यम तो होता ही है यह तो स्वतः सिद्ध है। जो जीव अशुभ कर्म बांधकर नरक योनि में जाते हैं, वे वहाँ कम से कम दस हजार वर्ष तक अवश्य रहते हैं । कोई भी नैरयिक जीव दस हजार वर्ष से पहले नरक से लौटकर नहीं आ सकता। इसी प्रकार जीव नरक में अधिक से अधिक तेतीस सागरोपम • तक रहता है। कोई भी जीव तेतीस सागरोपम से अधिक समय तक नरक में नहीं रह सकता है। - इसके पश्चात् गौतम स्वामी ने यह प्रश्न किया है कि-हे भगवन् ! क्या नरक के जीव श्वासोच्छ्वास लेते हैं ? भगवान् ने इस प्रश्न का उत्तर 'हाँ' में दिया है । तब गौतम स्वामी ने पूछा कि-नरक के जीव कितने समय में श्वासोच्छ्वास लेते हैं ? इसका उत्तर यह . • स्थिति-आयुकर्म के पुद्गलों के रहने की मर्यादा को स्थिति कहते हैं अर्थात् आयु को स्थिति कहते हैं। • सागरोपम किसे कहते हैं ? यह जान लेना आवश्यक है । यह संख्या लोकोत्तर है । अंकों द्वारा प्रकट नहीं कों जा सकती। अत: उसे समझाने का उपाय उपमा है । उपमा द्वारा ही इसे बताया गया है। इसीलिए इसे 'उपमा संख्या' कहते हैं । और इसी कारण 'सागर' शब्द न कहकर 'सागरोपम' शब्द का व्यवहार किया है । जीवों के आयुष्य परिमाण में सूक्ष्म अद्धापल्योपम और सागरोपम काम में आते हैं। उसका स्वरूप इस प्रकार है कल्पना कीजिये-उत्सेधांगुल से चार कोस लम्बा और चार कोस चौड़ा तथा चार कोस गहरा डा) एक गोल कुंआ हो । देवकुरु, उत्तरकुरु के युगलिया के एक दिन से लेकर सात दिन के बढ़े हए बाल (केश) लिये जावें । यगलिया के बाल अपने बालों से ४.९६ गने सूक्ष्म होते हैं। उन बालों के असंख्य खण्ड किये जावें, जो चर्म चक्षुओं.से दिखाई दिये जाने वाले टुकड़ों से असंख्य गुने छोटे हों अथवा सूर्य की किरणों में जो रज दिखाई देती है उससे असंख्य गुने छोटे हों। ऐसे टुकड़े करके उस कुंए में ठसाठस भर दिये जावें। सौ सौ वर्ष व्यतीत होने पर एक एक टुकड़ा निकाला जाय । इस प्रकार निकालते निकालते जब वह कुंआ खाली हो जाय तब एक सूक्ष्म अद्धापल्योपम होता है । जब ऐसे दस कोगकोटी कुएँ खाली हो जाय तब एक सूक्ष्म अद्धा सागरोपम होता है । एक करोड़ को एक करोड़ से गुणा करने से जो गुणनफल आता है, वह कोडाकोरी कहलाता है । ऐसे तेतीस सागरोपम की (अर्थात् १३. कोडाकोटी पल्पोपम की) नरक की उत्कृष्ट स्थिति है। यह आत्मा ऐसी स्थिति में अनेक बार रह आया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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