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________________ भग १ उ. १ नारक जीवों का वर्णन प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नैरयिक जीव आहारार्थी हैं ? उत्तर-हे गौतम ! पन्नवणा सूत्र के अट्ठाईसवें आहार पद के पहले उद्देशे .. की तरह जानना चाहिए। ___गाथा का अर्थ-नरयिक जीवों की स्थिति, उच्छ्वासों तथा आहार संबंधी कथन करना चाहिए । नरयिक क्या आहार करते हैं ? क्या वे समस्त प्रदेशों से आहार करते हैं ? वे कितने भाग का आहार करते हैं ? क्या वे समस्त आहारक द्रव्यों का आहार करते हैं ? और वे आहार के द्रव्यों को किस रूप में परिणमाते हैं ? - विवेचन-संसार में अनन्तानन्त प्राणी हैं । जगत्जीवों को उन सबका स्वरूप समझाने के लिए उनका वर्गीकरण (विभाग) करना आवश्यक है । वर्गीकरण किये बिना संसारी जीवों को उन सब का स्वरूप समझ में आना कठिन है । वर्गीकरण करने से उनका स्वरूप सुगमता से समझ में आ सकता है । इसलिए शास्त्रकारों ने संसार के समस्त प्राणियों का चौबीस विभागों में वर्गीकरण किया है । इन चौबीस विभागों को चोवीस दण्डक कहते हैं। वै इस प्रकार हैं नेरइया असुराई पुढवाई बेइंदियादओ चेव। पंचिदिय तिरिय नरा, वितर जोइसिय वेमाणी ॥ अर्थ-सात नरकों का एक दण्डक, असुरकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युतकुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार, इन दस भवनपतियों के दस दण्डक, पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय, इन पांच स्थावर के पांच दण्डक, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, इन तीन विकलेन्द्रियों के तीन दण्डक, तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय का एक दण्डक, मनुष्य का एक दण्डक, वाणव्यन्तर देवों का एक दण्डक, ज्योतिषी देवों का एक दण्डक और वैमानिक देवों का एक दण्डक । क्रमशः ये चौवीस दण्डक हैं। इन चौवीस दण्डकों में से पहले प्रथम दण्डक नरयिक + जीवों के विषय में कथन + निरय-निर-निर्गत: अय: इष्टफलरूप कर्म यस्मात् स निरयः । निरये भव: नरयिकः।। अर्थ-रयिक शब्द का व्युत्पत्त्यर्थ यह है कि जिनके पास से अच्छे फल देने वाले शुभ कर्म चले जो शभ-कर्मों से रहित है ऐसे स्थान को 'निरय' कहते हैं। 'निरय' में पैदा होने वाला 'मैरपिक' बहलाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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