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________________ ५०२ भगवती सूत्र - श. २ उ. ७ देवलोक का वर्णन हैं- भवनपति वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक । रत्नप्रभा पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन है। उसमें से एक हजार योजन ऊपर और एक हजार योजन नीचें छोड़ कर बीच में एक लाख अठहत्तर हजार योजन में भवनवासी देवों के सात करोड़ बहत्तर लाख भवन हैं । भवनवासियों का उपपात लोक के असंख्यातवें भाग में होता है और वे लोक के असंख्यातवें भाग में ही रहते हैं । मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा भी भवनवासी लोक के असंख्येय भाग में ही रहते हैं । वे अपने स्थान की अपेक्षा भी लोक के असंख्येय भाग में ही रहते हैं, क्योंकि उनके सात करोड़ बहत्तर लाख भवन लोक के असंख्येय भाग में ही हैं। इसी तरह असुरकुमार आदि के विषय में तथा यथोचित रूप से वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक, सभी देवों के स्थानों का कथन करना चाहिए यावत् सिद्ध भगवान् के स्थानों का वर्णन करने वाले 'सिद्धगंडिका' नामक प्रकरण तक कहना चाहिए । इस सम्बन्ध में 'जीवाभिगम' सूत्र के वैमानिक उद्देशक में वर्णित सारा वर्णन यहां कहना चाहिए । यथा - हे भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में विमान की पृथ्वी किस के आधार पर रही हुई है ? हे गौतम ! वह घनोदधि के आधार पर रही हुई है । जैसा कि कहा है Jain Education International घणउदहिपट्टाणा सुरभवणा हुति दोसु कप्पेसु । तिसु वाउपट्टाणा तदुभयसुपइट्ठिया तिसु य । तेन परं उवरिमगा आगासंतरपइट्टिया सव्वे ॥ अर्थात् - पहला व दूसरा देवलोक घनोदधि के आधार पर रहा हुआ है। तीसरा, चौथा और पाँचवाँ देवलोक घनवायु के आधार पर रहा हुआ है। छठा, सातवाँ और आठवाँ देवलोक घनोदधि और धनवायु के आधार पर रहा हुआ है। इसके बाद ऊपर के सब विमान आकाश के आधार पर रहे हुए हैं । बाल्य अर्थात् मोटाई और उच्चत्व अर्थात् ऊंचाई इस प्रकार है सत्तावीससयाइं आइम कप्पेसु पुढविवाहल्लं । एक्किक्कहाणि सेसे तु वुगे य दुगे चउक्के य । पंचसय उच्चत्तेर्ण आइमकप्पेसु होंति उ विमाणा । एक्किक्कबुडि सेसे दु दुगे य दुगे चउक्के य ॥ अर्थ- सौधर्म और ईशान कल्प में विमानों की मोटाई सत्ताईस सौ योजन और For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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