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________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ गरम पानी का कुण्ड + + + वणे-प्रश्रवण = झरना, उसिणजोणिया-उष्णयोनिक, वक्कमंति-उत्पन्न होते हैं, विउक्कमंति-विनष्ट होते हैं, चयंति-चवते हैं, उववज्जति-उत्पन्न होते हैं, तव्वइरिते-तद्व्यतिरिक्त = तदुपरान्त । भावार्थ-४७ प्रश्न-हे भगवन् ! अन्यतीथिक इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं, प्ररूपणा करते हैं कि-राजगह नगर के बाहर वैभार पर्वत के नीचे एक बडा पानी का ह्रद-कुण्ड है। उसकी लम्बाई चौडाई अनेक योजन है, उसका अगला भाग अनेक प्रकार के वृक्षों से सुशोभित है, सुन्दर है यावत् प्रतिरूप है अर्थात् दर्शकों की आँखों को सन्तुष्ट करने वाला है। उस द्रह में अनेक उदार मेघ संस्वेदित हैं-उत्पन्न होते हैं, सम्मच्छित होते हैं-उसमें गिरते हैं और बरसते हैं । तदुपरान्त अर्थात् कुण्ड भर जाने पर उसमें से सदा परिमित गरम जल झरता रहता है । हे भगवन् ! क्या यह बात ठीक है अर्थात् क्या अन्यतीथिकों का यह कथन सत्य है ? . ४७ उत्तर-हे गौतम ! अन्यतीथिक जो इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं, प्ररूपणा करते हैं वह मिथ्या है । हे गौतम ! में इस तरह से कहता हूँ, भाषण करता हूं, बतलाता हूँ, प्ररूपणा करता हूँ कि-राजगृह नगर के बाहर वैभार पर्वत के पास 'महातपोपतीरप्रभव' नाम का एक प्रश्रवण-झरना है । उसको लम्बाई चौडाई पांच सौ धनुष है, उसका अगला भाग अनेक प्रकार के वृक्षों से सुशोभित हैं, वह सश्रीक-शोभायुक्त है, वह प्रासादीय-प्रसन्नता पैदा करने वाला है, दर्शनीय-देखने योग्य है, अभिरूप-रमणीय है, प्रतिरूप-प्रत्येक . दर्शक की आंखों को संतोष देने वाला है। उस झरने में अनेक उष्ण योनि वाले जीव और पुद्गल, अप्काय रूप से उत्पन्न होते हैं, नष्ट होते हैं, चवते हैं, उपचय को प्राप्त होते हैं । तदुपरान्त उस झरने में से हमेशा परिमित गरम पानी सरता रहता है । हे गौतम ! वह 'महातपोपतोरप्रभव' नाम का झरना है और यह 'महातपोपतीर' नामक मरने का अर्थ है । ____'सेवं भंते !. सेवं भंते !! हे भगवन् ! यह बात इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह बात इसी प्रकार है'-ऐसा कह कर गौतमस्वामी श्रमण भगवान् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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