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________________ ४४८ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक की गति mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm सारा वृत्तान्त निवेदन कर दिया। भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीः-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खदए णाम अणगारे कालमासे कालं किचा कहिं गए कहिं उपवण्णे? 'गोयमाई' ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी खंदए णामं अणगारे पगइभद्दए, जाव-से णं मए अन्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाई आरु. हेत्ता, तं चेव सव्वं अविसेसिय नेयवं, जाव-आलोइयपडिपकते, समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णे तत्य णं अत्यंगइयाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णता, तस्स णं खंदयस्स वि देवस्स बावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । से गं भंते ! स्वंदए देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवरखएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता, कहिं गच्छिहिइ कहिं उववजिहिइ ? ति । गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिह मुचिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिह ॥ खंदओ सम्मत्तो॥ ॥ बिइयसयस्स पढमो उद्देसो सम्मत्तो॥ • विशेष शब्दों के अर्थ-अपएकप्पे-अच्चुतकल्प नामक १२ वा देवलोक, निस्थिति, अगंतरं-अनन्तर चयं-मरना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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