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________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक को बोध प्राप्ति mmmmmmmwww विवेचन-पण्डितमरण के दो भेद हैं - १ पादपोपगमन मरण और २ भक्तप्रत्याख्यान मरण । .. १ संथारा करके वृक्ष के समान जिस स्थान पर जिस रूप में एक बार लेट जाय, फिर उसी जगह उसी रूप में लेटे रहना और इस प्रकार मत्यु हो जाना 'पादपोपगमन मरण' है । इसके दो भेद हैं-निर्हारिम और अनिर्हारिम । निर्वारिम-जो सथारा ग्राम नगर आदि बस्ती में किया जाय, जिससे मत-कलेवर को ग्रामादि से बाहर ले जाकर अग्निदाहादि संस्कार करना पड़े उसे, 'निर्हारिम' कहते हैं । अनिर्हारिम-जो संथारा ग्राम नगर आदि बस्ती से बाहर जंगल आदि एकान्त स्यान में किया जाय, जिससे मृत-कलेवर को वहां से ले जाने की आवश्यकता न रहे, उसे 'अनिर्झरिम' कहते हैं । यह दोनों प्रकार का पादपोपगमन मरण नियमा (नियम पूर्वक) अप्रतिकर्म (शरीर की सेवा शुश्रूषा और हलन चलने से रहित) होता है। . २ भक्तप्रत्याख्यान मरण-यावज्जीवन तीन या चारों आहारों का त्याग करने के बाद जो मृत्यु होती है, उसे 'भक्तप्रत्याख्यान मरण' कहा जाता है । उसके भी निर्हारिम और अनिर्हारिम ये दो भेद हैं। यह मरण सप्रतिकर्म है। ..किसी किसी प्रति में यहाँ 'इंगितमरण' का कथन किया है। वह इंगितमरण'भक्तप्रत्याख्यान मरण का ही एक विशेष भेद है। इसीलिए उसकी यहाँ अलग व्याख्या नहीं की है। ___तए णं समणे भगवं महावीरे खदयस्स कच्चायणस्सगोत्तस्स, तीसे य. महइमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेह । धम्मकहा भाणियव्वा । तए णं से खंदए कच्चायणस्सगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा, णिसम्म हट्टतुढे जाव-हियहियए उठाए उठेइ, उद्वित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करिता एवं वयासीः-सदहामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, रोएमिणं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, अब्भुट्टेमि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं; एवमेयं भंते ! तह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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