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________________ ४०८ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक-सिद्ध स्वरूप था कि जीव सान्त है, या अनन्त है ? हे स्कन्दक! मैने जीव के चार भेद कहे हैं -१ द्रव्य जीव, २ क्षेत्र जीव, ३ काल जीव, और ४ भाव जीव । १ द्रव्य से-जीव एक है, अन्त सहित है। २ क्षेत्र से जीव असंख्यात प्रदेश वाला है, असंख्यात आकाश प्रदेश अवगाहन किये है। अंत सहित है। ३ काल से-जीव नित्य है अर्थात् ऐसा कोई समय नहीं था, न है और न होगा कि जब जीव न रहा हो, यावत् जीव नित्य है, अन्त रहित है। ४ भाव से-जीव के अनन्त ज्ञान पर्याय हैं, अनन्त दर्शन पर्याय हैं, अनन्त चारित्र पर्याय हैं, अनन्त अगुरुलघु पर्याय हैं, अन्त रहित है । इस प्रकार द्रव्य-जीव और क्षेत्र-जीव अन्त सहित है तथा काल-जीव और भाव-जीव अन्त रहित है । इसलिए हे स्कन्दक! जीव अन्त सहित भी है और अन्त रहित भी है। विवेचन-जीव अनन्त होते हुए भी प्रत्येक जीव अपने द्रव्य की अपेक्षा सान्त, समी समान रूप से असंख्य प्रदेश वाले एवं असंख्य प्रदेशावगाढ़ हैं । इस प्रकार जीव अन्त सहित है । कालापेक्षा वह अनादि अनन्त है, सदा सर्वदा रहनेवाला है । और भाव की अपेक्षा ज्ञानादि अनन्त पर्याय युक्त है । अतएव अनन्त है । जे वि य ते खंदया ! (पुच्छा) इमेयारूवे चिंतिए जाव-किं सअंता सिद्धी, अणंता सिद्धी तस्स वि य णं अयमढे-मए खंदया ! एवं खलु चउन्विहा सिद्धी पण्णत्ता, तं जहाः-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ । १ दव्वओ णं एगा सिद्धी सअंता, २ खेत्तओ णं सिद्धी पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च जोयणसयसहस्साई तीसं च जोयण. सहस्साइं दोण्णि य अउणापण्णजोयणसए किंचि विसेसाहिए परिवखेवेणं, अत्थि पुण से अंते।३ कालओ णं सिद्धी ण कयाइ ण आसी, ४ भावओ य जहा लोयस्त तहा भाणियवा । तत्थ दबओ सिद्धी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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