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________________ २२ भगवतीसूत्र - श. १ उ. १ चलमाणे चलिए आदि प्रश्न विवेचन - प्रारम्भ में ' से गूणं' ये दो शब्द हैं । 'से' का अर्थ 'अथ' है जो वाक्य का प्रारम्भ करने के लिए आता है। 'गूगं' ( नूनं ) शब्द का अर्थ 'निश्चय' है । 'भंते / शब्द का अर्थ 'भगवन्' है । यह गुरु महाराज के आमन्त्रण का सूचक है। अतः 'भंते' इस आमन्त्रण से गौतमस्वामी ने अपने गुरु भगवान् महावीर स्वामी को सम्बोधित करके 'चलमाणे चलिए' आदि नौ प्रश्न किये हैं । यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि गौतमस्वामी ने सब से पहले 'चलभाणे चलिए यही प्रश्न क्यों किया ? कोई दूसरा प्रश्न पहले क्यों नहीं किया ? इसका समाधान यह है कि-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ कहे गये हैं । इन सब में 'मोक्ष' पुरुषार्थ ही सर्व प्रधान है। इस मोक्ष रूपी साध्य के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र ये अव्यभिचारी ( निश्चित ) साधन हैं । अर्थात् मोक्ष रूपी साध्य इन्हीं साधनों से प्राप्त हो सकता है, दूसरे साधनों से नहीं । तथा सम्यग्दर्शनादि साधनों से मोक्ष रूपी साध्य की ही प्राप्ति होती है, अन्य की नहीं । इस प्रकार के अव्यभिचारी साध्य साधनों वाले शास्त्र में ही विवेकी पुरुषों की प्रवृत्ति होती है । मोक्ष का विपक्ष ( मोक्ष विरुद्ध पक्ष ) 'बन्ध' है। आत्मा के साथ कर्मों का एकमेक होजाना बन्ध है । जैसे दूध और पानी आपस में मिलकर एकमेक हो जाते हैं उसी प्रकार कर्म-प्रदेशों का आत्मप्रदेशों के साथ एकमेक हो जाना बन्ध है । बन्ध से छुटकारा पाना - बन्ध का सर्वथा + 'अंते' शब्द की संस्कृत छाया 'भदन्त, भजन्त, भान्त, भ्राजन्त, प्रान्त, भगान्त, भवान्त भगवत्' होती है । जिनका क्रमश: संक्षिप्त अर्थ यह है-भदन्त - कल्याणकारी, सुखकारी। भजन्त-सम्यग् ज्ञान दर्शन चारित्र रूप मोक्ष मार्ग का सेवन करने वाले । भान्त-तपादि गुणों की दीप्ति से चमकने वाले । भ्राजन्ततपादि गुणों की दीप्ति से युक्त । प्रान्त मिथ्यात्वादि बन्धनों से रहित । भयान्त- सांसारिक भय - त्रास से रहित । भवान्त — नरकादि समस्त भवों का अन्त करने वाले । भगवत् - ऐश्वर्यादि सम्पन्न । 'धग' शब्द से 'वतु' प्रत्यय रूम कर 'भगवत्' शब्द बना है। शास्त्रों में 'भग' शब्द के ये अर्थ दिये हैं ऐश्वर्यस्य समग्रस्य, रूपस्य यशसः श्रियः । धर्मस्याय प्रयत्नस्य, षण्णां भग इतींगना ॥ अर्थात् - सम्पूर्ण ऐश्वर्य, रूप, यश, श्री, धर्म और प्रयत्न, ये छह 'भग' शब्द के अर्थ हैं। तीर्थंकर देव चौंतीस अतिशय रूपी बाहरी ऐश्वर्य से और केवलज्ञान केवलदर्शन रूपी आन्तरिक अतिशय रूपी ऐश्वर्य से, इस प्रकार समग्र ऐश्वर्यं से सम्पन्न होने के कारण 'भगवान्' कहे जाते हैं । 'भंते' शब्द का अर्थ 'भगवन्' यह जैनागमों में प्रचलित हैं। अतः यहां 'भगवन्' शब्द का ही प्रयोग किया जायगा । 'भदन्त' आदि शब्द बौद्धादि साहित्य में प्रचलित है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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