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________________ ३८४ भगवती सूत्र-श. २ उ, १ वायुकाय का श्वासोच्छ्वास निकलता है या शरीर रहित ? __ ११ उत्तर-हे गौतम ! वह कथञ्चित् सशरीरी निकलता है और कथञ्चित् अशरीरी निकलता है। - १२ प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि वायुकाय का जीव जब निकलता है तब वह कथञ्चित् सशरीरी निकलता है और कथञ्चित् अशरीरी निकलता है ? १२ उत्तर-हे गौतम ! वायुकाय के चार शरीर होते हैं । वे इस प्रकार हैं-औदारिक, वैक्रिय, तेजस और कार्मण। इनमें से औदारिक और वैक्रिय को छोड़कर दूसरे भव में जाता है, इस अपेक्षा से वह अशरीरी जाता है, और तेजस और कार्मण शरीर को वह साथ लेकर जाता है । इस अपेक्षा से वह सशरीरी जाता है। इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि-वायुकाय मरकर दूसरे भव में कथञ्चित् (किसी अपेक्षा से) सशरीरी जाता है और कथञ्चित् अशरीरी जाता है। __ विवेचन-एकेन्द्रिय जीवों के भी श्वासोच्छ्वास होता है और वह वायुरूप होता है, तो जिस तरह से पृथ्वीकाय का श्वासोच्छ्वास पृथ्वी से भिन्न वायुरूप होता है, तो क्या इसी तरह वायुकाय का श्वासोच्छ्वास भी वायुकाय से भिन्न होता है, या वायुरूप ही होता है ? इस शंका को दूर करने के लिए गौतम स्वामी ने यह प्रश्न किया है कि-हे भगवन् ! क्या वायुकाय, वायुकाय को ही बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता है ? इस प्रश्न का उत्तर भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! वायुकाय, वायुकाय को ही बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास रूप में ग्रहण करता है और छोड़ता हैं । . शंका-जैसे पृथ्वी स्वयं पृथ्वी रूप है और उसका श्वासोच्छ्वास वायुरूप है । इसी तरह अप्काय स्वयं अप्काय (पानी) रूप है और उसका श्वासोच्छ्वास वायुरूप हैं । किन्तु वायुकाय में इससे भिन्नता है कि वायुकाय स्वयं वायु रूप है तो भी उसे श्वासोच्छवास के रूप में दूसरी वायु की आवश्यकता रहती है, तो यहां यह शंका उपस्थित होती है कि फिर उस दूसरी वायु को तीसरी वायु की आवश्यकता रहेगी और तीसरी वायु को चौथी वायु की । इस तरह अनवस्था दोष आ जायगा । इसका क्या समाधान है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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