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भगवती-सूत्र श. १ उ. १० उपपात विरह
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होता है कि जब कोई जीव, नरक में उत्पन्न नहीं हो ? . भगवान् ने इस प्रश्न का संक्षेप में उत्तर दिया कि-हे गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त ।
इस विषय का विस्तृत विवेचन प्रज्ञापना सूत्र के छठे पद में किया गया है । वही विवेचन यहां समझलेना चाहिए । उसका संक्षिप्त अर्थ इस प्रकार है-पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च गति में, मनुष्य गति में और देव में जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त का उत्पाद विरह काल है । सात नरकों में विरह काल इस प्रकार है।
चउबीसई महत्ता सत्त अहोरत्त तह य पारस। .
मासो य दो य चउरो, छम्मासा विरहकालो उ ।। - अर्थात्-पहली नरक में चौबीस मुहूर्त का, दूसरी में सात अहोरात्र का, तीसरी में पन्द्रह अहोरात्र का, चौथी में एक मास का, पांचवी में दो मास का, छठी में चार मास का, और सातवीं नरक में छह मास का विरह काल होता है। इन सब में जघन्य विरह काल एक समय का होता है। ... भवनपति, वाणव्यन्तर और ज्योतिषी देवों में तथा पहले दूसरे देवलोक में चौबीस मुहूर्त का विरह काल है । तीसरे देवलोक में नौ दिन और बीस मुहूर्त का, चौथे देवलोक में बारह दिन और दस मुहूर्त का, पांचवें देवलोक में साढ़े बाईस दिन का, छठे देवलोक में पैंतालीस दिन का, सातवें देवलोक में अस्सी दिन का, आठवें देवलोक में सौ दिन का, नववें और दसवें देवलोक में संख्यात महीनों का (जो एक वर्ष से अधिक न हो,), ग्यारहवें और बारहवें देवलोक में संख्यात वर्ष का (जो एक सौ वर्ष से अधिक न हो) विरहकाल होता है । अवेयक की पहली त्रिक में संख्यात सैकड़ों वर्षों का, दूसरी विक में संख्यात हजारों वर्षों का और तीसरी त्रिक में संख्यात लाखों वर्षों का विरहकाल होता है । जैसा कि गाथाजों में कहा है। ___ भवण-वण-जोई-सोहम्मीसाणे चउवीस मुहुत्ताओ ।
उकोसबिरहकालो पंचसु वि जहओ समो॥ णवविण वोस मुहत्ता, बारस बस व विणमुहत्तायो। बाबीसा अखं चिय, पणयाल असीइ विवससयं ॥ . संज्जा मासा आणयपाणयएसु तह आरण अच्छुए वासा। संखेज्जा विग्णेया गेवेसं अबो बोच्छं
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