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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. १० दुःख कृत या अकृत ३६५ बोलते हुए पुरुष की भाषा है या न बोलते हुए पुरुष की भाषा है ? (उत्तर) -न बोलते हुए पुरुष की वह भाषा है, बोलते हुए पुरुष को वह भाषा नहीं है। ३१४-वह जो पूर्व की क्रिया है वह दुःख रूप है, वर्तमान में जो क्रिया की जाती है वह क्रिया दुःख रूप नहीं है और करने का समय बीत जाने के बाद को 'कृतक्रिया' दुःख रूप है। ३१५-वह जो पूर्व की क्रिया है वह दुःख का कारण है । की जाती हुई क्रिया दुःख का कारण नहीं है और करने के समय के बाद की क्रिया दुःख का कारण है, तो क्या वह करने से दुःख का कारण है ? या नहीं करने से दुःख का कारण है ? (उत्तर) 'नहीं करने से वह दुःख का कारण है, करने से दुःख का कारण नहीं है'-ऐसा कहना चाहिए। ___३१६-अकृत्य दुःख है, अस्पश्य दुःख है और अक्रियमाणकृत दुःख है। उसे न करके प्राण, भूत, जीव, सत्त्व वेदना भोगते हैं-ऐसा कहना चाहिए। ३१७-प्रश्न-गौतम स्वामी पूछते हैं कि-हे भगवन् ! अन्यतीथिकों की उपरोक्त मान्यता किस प्रकार है ? विवेचन-नववें उद्देशक के अन्त में कर्मों की अस्थिरता बतलाई गई थी। कर्म परोक्ष हैं । परोक्ष वस्तु के स्वरूप के विषय में कुतीर्थिक विवाद करते हैं, उसकी असत्यता बतलाने के लिए तथा प्रथम शतक के प्रारम्भ में संग्रह गाथा में 'चलणाओ' यह पद दिया था। अतः उसका प्रतिपादन इस दसवें उद्देशक में किया जाता है। - 'चलमाणे अचलिए' से यावत् 'णिज्जरिज्जमाणे अणिज्जिण्णे' तक का उत्तर तो पहले उद्देशक में ही आगया है, वह वहां से जान लेना चाहिए । इसके बाद गौतम स्वामी ने पूछा कि-हे भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं कि-दो परमाणु पुद्गल आपस में नहीं मिल सकते, क्योंकि उनमें चिकनापन नहीं है । हां, तीन परमाणु पुद्गल मिल सकते हैं, क्योंकि उनमें चिकनापन है । मिले हुए वे तीन परमाणु पुद्गल यदि अलग हों, तो उनके दो विभाग भी हो सकते हैं और तीन विभाग भी हो सकते हैं । यदि दो विभाग हों, तो डेढ़ डेढ़ परमाणु अलग अलग हो जाते हैं और यदि तीन विभाग हों, तो एक एक परमाणु अलग अलग हो जाता है । गौतम स्वामी पूछते हैं कि हे भगवन् ! क्या अन्यतीथिक का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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