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________________ भगवती सूत्र-श, १ उ. ९ अप्रत्याख्यान क्रिया ३५३ से पालन किया, अभीष्ट प्रयोजन का सम्यक् रूप से आराधन किया । अन्तिम श्वासोच्छ्वास द्वारा सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए, परिनिवृत हुए और सब दुःखों से रहित हुए। विवेचन-तब कालास्यवेषिपूत्र अनगार ने स्थविर भगवन्तों को वन्दना नमस्कार करके चतुर्याम के स्थान पर पंचयाम (पांच महाव्रत वाला) सप्रतिक्रमण धर्म स्वीकार किया। . इसके पश्चात् कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने बहुत वर्षों तक साधुपना पाला और जिस उद्देश्य के लिए उन्होंने संयम स्वीकार किया था उसको पूर्ण किया । अन्तिम श्वासोच्छ्वास द्वारा वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए और सर्व दुःखों से रहित हुए। . अप्रत्याख्यान क्रिया . ३०१ प्रश्न-भंते' ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदह, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासीः-से गूणं भंते ! सेटि. यस्स य, तणुयस्स य, किवणस्स य, खत्तियस्स य समं चेव अपञ्च खाणकिरिया कजइ। ___३०१ उत्तर-हता, गोयमा ! सेट्ठियस्स य, जाव-अपचक्खाणकिरिया कजइ। ३०२ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! ..३०२ उत्तर-गोयमा ! अविरतिं पडुच्च । से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुबइ-सेट्टियस्स य, तणुयस्स य, जाव-कजइ । ... विशेष शब्दों के अर्थ–सेट्ठियस्स-सेठ का; तणुयस्त-दरिद्री का, किवणस्स-कृपण =कंजूस का, सत्तियस्स-क्षत्रिय का, अपच्चक्खाण किरिया-अप्रत्याख्यान क्रिया, अविर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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