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भगवती सूत्र - श. १ उ. ९ स्थविरों से कालास्यवेषि के प्रश्नोत्तर
सपडिक्कमणं धम्म उवसंपजित्ताणं विहरइ । तए णं से कालास: वेसियपुत्ते अणगारे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता, जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे, मुंडभावे, अण्हाणयं, अदंतधुवणयं, अच्छत्तयं, अणोवाहणयं, भूमिसेजा, फलहसेजा, कट्ठसेजा, . केसलोओ, बंभचेरवासो, परघरप्पवेसो, लद्धावलद्धीः उच्चावया, गामकंटगा, बावीसं परिसहोवसग्गा अहियासिति । तं अटै आराहेइ, आराहित्ता, चरिमेहिं उस्सास-नीसासेहिं सिद्धे, बुद्धे, मुत्ते, परिनिव्वुडे, सव्वदुक्खप्पहीणे। .
विशेष शब्दों के अर्थ-सामण्णपरियागं-श्रमण पयोय, साधुपना, पाउणइ-प्राप्त किया, अणोवाहणयं-उपानह = पगरखी रहित, लद्धावलद्धी-मिले या नहीं मिले, गामकंटगा-इन्द्रियों के लिए कांटे के समान बाधक, अहियासिज्जंति-सहन किया, अव्हाणयं-स्नान नहीं करना, फलहसेज्जा-पटिये पर सोना, कटुसेज्जा-लकड़ी पर सोना, उच्चावया-अनुकूल प्रतिकूल।
भावार्थ-तब कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने स्थविर. भगवन्तों को वन्दना को, नमस्कार किया और चार महाव्रत धर्म से प्रतिक्रमण सहित पांच महावत रूप धर्म स्वीकार कर के विचरने लगे। ___इसके बाद कालस्यवेषिपुत्र अनगार ने बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन किया और जिस प्रयोजन के लिए नग्नभाव, मुण्डभाव, स्नान न करना, दतौन न करना, छत्र न रखना, जूते न पहनना, जमीन पर सोना (शयन करना) पाट पर सोना, काष्ठ पर सोना, केश लोच करना, ब्रह्मचर्य पालन करना, भिक्षा के लिए गृहस्थों के घर जाना, और अलाभ सहना अर्थात् अभीष्ट भिक्षा मिल जाने पर हर्षित न होना और भिक्षा न मिलने पर खेदित न होना, इन्द्रियों के लिए कांटे के समान चुभने वाले कठोर शब्दादि को सहन करना, अनुकूल और प्रतिकूल परीषहों को सहन करना, इन सब बातों का उन्होंने सम्यक् रूप
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