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________________ ३४. भगवती सूत्र-श. १ उ. ९ स्थविरों से कालास्यवेषि के प्रश्नोत्तर मतावलम्बियों का यह कथन ठीक है ? भगवान् ने फरमाया-हे गौतम ! एक समय में एक जीव के दो आयुष्य बांधने की बात गलत है, क्योंकि एक समय में एक जीव, एक ही आयुष्य का बन्ध करता है । यदि यह कहा जाय कि जैसे-जीव, सम्यक्त्व और ज्ञान दोनों पर्यायों का एक साथ अनुभव करता है, उसी प्रकार एक समय में दो आयु बांधे, तो क्या बाधा है ? इसका समाधान यह है कि-जिस प्रकार सिद्धत्व और संसारित्व, ये दोनों पर्यायें परस्पर विरुद्ध हैं, जिस समय जीव, सिद्धत्व पर्याय का अनुभव करता है उसी समय वह जीव संसारित्व पर्याय का अनुभव नहीं कर सकता और जिस समय संसारित्व पर्याय का अनुभव करता है, उसी समय वह जीव, सिद्धत्व पर्याय का अनुभव नहीं कर सकता। इसी प्रकार एक जीव, एक समय में दो आयुष्य का बन्ध नहीं कर सकता।. __अन्ययूथिकों के उपर्युक्त कथन का प्राचीन टीकाकार ने तो यह अर्थ किया है किजीव, जिस समय इस भव के आयुष्य को वेदता है उसी समय परभव का आयुष्य बांधता यह कथन भी ठीक नहीं है, क्योंकि उत्पन्न होते ही जीव परभव का आयुष्य बांध लेता हो, तो दान धर्मादि सब व्यर्थ हो जायेंगे । इसलिए अन्ययूथिकों का यह कथन ठीक नहीं है, टीकाकारों ने जोअन्ययूथिकों के मत का खण्डन किया है, वह बन्ध काल को छोड़कर अन्य समय की अपेक्षा से किया है। अन्यथा आयुष्य बन्ध के समय जीव इस भव के आयुष्य को वेदता है और परमव के आयुष्य को बांधता है। गौतम स्वामी 'सेवं भंते, सेव भंते' अर्थात् 'हे भगवन् ! जैसा आप फरमाते हैं वह यथार्थ है' । ऐसा कह कर अपनी आत्मा को तप संयम से भावित करते हुए विचरने लगे। स्थविरों से कालास्यवेषि के प्रश्नोत्तर २९६-ते णं काले णं, ते णं समए णं पासावचिजे कालासवेसियपुत्ते णामं अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते एवं वयासीः-थेरा सामाइयं न याति; Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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