________________
भगवती सूत्र - श. १ उ. ७ गर्भस्थ जीव की नरकादि गति
धर्म में श्रद्धा उत्पन्न हुई है अर्थात् धर्म श्रद्धालु तिव्वधम्माणुरागरते- तीव्र धर्मानुराग रक्त, पुण्ण- - पुण्य, सग्ग-स्वर्ग ।
३०६
भावार्थ - २५४ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या गर्भ में रहा हुआ जीव, नरक में उत्पन्न होता है ?
२५४ उत्तर - हे गौतम ! कोई उत्पन्न होता है और कोई नहीं होता है। २५५ प्रश्न - - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
--
२५५ उत्तर - हे गौतम! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पञ्चेन्द्रिय और संब पर्याप्तियों से पर्याप्त जीव, वीर्य-लब्धि द्वारा, वैक्रिय-लब्धि द्वारा, शत्रु की सेना को आई हुई सुनकर, अवधारण करके अपने आत्मप्रदेशों को गर्भ से बाहर निकालता है, बाहर निकालकर वैक्रिय समुद्घात से समवहत होकर चतुरंगिनी सेना की विक्रिया करता है । चतुरंगिनी सेना की विक्रिया करके उस सेना से शत्रु की सेना के साथ युद्ध करता है । वह अर्थ (धन) का कामी, राज्य का कामी, भोग का कामी, काम का कामी, अर्थ में लंपट, राज्य में लंपट, भोग में लंपट तथा काम में लंपट, अर्थ का प्यासा, राज्य का प्यासा, भोग का प्यासा और काम का प्यासा, उन्हीं में चित्त वाला, उन्हीं में मन वाला, उन्हीं में आत्म परिणाम वाला, उन्हीं में अध्यवसित, उन्हीं में प्रयत्न वाला, उन्हीं में सावधानता वाला, उन्हीं के लिए क्रिया करने वाला और उन्हीं के संस्कार वाला जीव, यदि उसी समय मृत्यु को प्राप्त हो, तो नरक में उत्पन्न होता है। इसलिए हे गौतम! कोई जीव नरक में जाता है और कोई नहीं जाता है ।
२५६ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या गर्भ में रहा हुआ जीव, देवलोक में जाता
है ?
२५६ उत्तर - हे गौतम! कोई जीव जाता है और कोई नहीं जाता है । २५७ प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
२५७ उत्तर - हे गौतम! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पञ्चेन्द्रिय और सब पर्याप्तियों से पर्याप्त (पूर्ण) जीव, तथारूप के श्रमण या माहन के पास एक भी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org