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भगवती सूत्र - श. १ उ. ५ वाणव्यन्तरादि के स्थिति आदि
पति देवों में जहाँ अस्सी भंग कहे हैं, वहाँ अस्सी भंग और जहाँ संत्ताईस मंग कहे हैं, वहाँ सत्ताईस भंग वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिकों में भी समझना चाहिए ।
भवनपति और वाणव्यन्तर देवों का वर्णन एक समान हैं, किन्तु ज्योतिषी और वैमानिकों में कुछ अन्तर है । यह बात प्रकट करने के लिए ही कहा गया है कि - जिसमें जहाँ जो विशेषता हो वह जानना चाहिए, जैसा कि लेश्या द्वार में ज्योतिषी देवों में केवल एक तेजोलेश्या ही पाई जाती है। ज्ञान द्वार में नियमपूर्वक तीन ज्ञान अथवा तीन अज्ञान पाये जाते हैं। क्योंकि असंज्ञी जीव ज्योतिषी देवों में उत्पन्न नहीं होते, अतएव वहाँ अपर्याप्त अवस्था में भी विभंग ज्ञान होता है ।
वैमानिक देवों में भी लेश्याद्वार में भवनपति देवों से कुछ भिन्नता है । वैमानिक देवो में तेजो, पद्म और शुक्ल, ये तीन शुभ लेश्याएँ ही पाई जाती हैं । इसी प्रकार ज्ञान द्वार में नियम पूर्वक तीन ज्ञान अथवा तीन अज्ञान कहना चाहिए ।
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॥ प्रथम शतक का पांचवां उद्देशक समाप्त ॥
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