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________________ भगवती सूत्र - श. ५ उ. ५ स्थिति स्थान कोहोवउत्ता य, माणोवउत्ता य, मायोवउत्ता य । एवं कोह- माणलोभेण वि च । एवं कोह-माया -लोभेण वि च । एवं १२ । पन्छा माणेण, माया, लोभेण य कोहो भइयव्वो । ते कोहं अमुंचता । एवं सत्तावीस भंगा यव्वा । १७१ प्रश्न - इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावासस्यसहस्से एगमेगंसि निरयावासंसि समयाहियाए जहण्णद्वितीय वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता, माणोवउत्ता, मायोवउत्ता, भत्ता ? १७१ उत्तर - गोयमा ! कोहोवउत्ते य, माणोवउत्ते य, मायोवउत्ते य, लोभोवउत्ते य । कोहोवउत्ता य, माणोवउत्ता य, मायोवउत्ता य, लोभोत्ता य । अहवा कोहोवउत्ते य, माणोवउत्ते य । अहवा कोहोवउत्ते य, माणोवउत्ता य । एवं अमीति भंगा नेयव्वा । एवं जाव - संखेज्जसमयाहिया टिई, असंखेज्जसमयाहिया टिई; तप्पा उग्गुकोसिया ठिईए सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा । . २२९ विशेष शब्दों के अर्थ - ओगाहण - अवगाहना, संघयण - संहनन, संठाणे - संस्थान, ठट्ठाणा - स्थिति स्थान, तप्पाउग्गुक्कोसिया - उसके योग्य उत्कृष्ट स्थिति, कोहोवउत्ता - क्रोधोपयुक्त, माणोवउत्ता - मानोपयुक्त, मायोवउत्ता - मायोपयुक्त, लोभोवउत्ता - लोभोपयुक्त । भावार्थ- संग्रह गाथा का अर्थ इस प्रकार है - नरकावासादि में स्थिति, अवगाहना, शरीर, संहनन, संस्थान, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग और उपयोग, इन दस बातों का विचार करना है । .. १६९ प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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