SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२२ भगवती सूत्र-श. १ उ. ५ नरकावास. . शतक १ उद्देशक ५ नरकावास १६४ प्रश्न कह णं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ? ... १६४ उत्तर-गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहाःरयणप्पभा जाव-तमतमा। १६५ प्रश्न-इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए कति निरया: वाससयसहस्सा पण्णता ? १६५ उत्तर-गोयमा ! तीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता । गाहाः तीसा य पण्णवीसा पण्णरस दसेव या सयसहस्सा; तिण्णेगं पंचूणं पंचव अणुत्तरा निरया । विशेष शब्दों के अर्थ-णिरयावास-नरकावास, सयसहस्सा-लाख, अनुतरा-प्रधान । भावार्थ-१५४ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वियां कितनी कही गई हैं ? ... १६४ उत्तर-हे गौतम ! पृथ्वियां सात कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं• रत्नप्रभा यावत् तमस्तमाप्रमा। १६५ प्रश्न-हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने लाल नरकावास-अर्थात् नरयिकों के रहने के स्थान, कहे गये हैं ? १६५ उत्तर-हे गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नरकावास कहे गये हैं। सब पश्वियों में नरकावासों की संख्या बतलाने वाली गाथा का अर्थ इस प्रकार है-पहली पृथ्वी में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy