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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. ४ छद्मस्थादि की मुक्ति २२१ जानने वाले ज्ञान को अवधिज्ञान कहते हैं । परमावधि ज्ञान से हलका अवधिज्ञान 'आधोवधि' ज्ञान कहलाता है । इस 'आधोवधि' ज्ञान से उत्कृष्ट अवधि ज्ञान को 'परमाधोवधि' अथवा ‘परमावधि' कहते हैं। इन ज्ञानों के धारक को क्रमशः 'आधोवधिक' और परमाधोवधिक या ‘परमावधिक' कहते हैं । परम अवधिज्ञानी समस्त रूपी द्रव्यों को; अलोक में लोक प्रमाण असंख्यात खण्डों को तथा असंख्य उत्सर्पिणी अवसर्पिणी को जानने की शक्ति वाला होता है। ___ ऐसा अवधिज्ञानी पुरुष भी छमस्थ है । वह उसी अवस्था में मोक्ष नहीं जा सकता है। यों तो जिस पुरुष को लोकाकाश को लांघ कर अलोक के एक प्रदेश को भी जानने की शक्ति वाला ज्ञान प्राप्त हो जाय वह पुरुष अप्रतिपाती अवधिज्ञान वाला कहलाता है। . परमावधि मोक्ष तो जाना है किन्तु जाता 'केवली' होकर के ही है । 'केवली हुए बिना कोई मोक्ष नहीं जा सकता । 'केवली' के विषय में भी तीन काल सम्बन्धी तीन आलापक कहने चाहिए । यया-केवलो ही मोक्ष गये हैं, केवली ही मोक्ष जाते हैं और केवली ही मोक्ष जायेंगे। . उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधर, अर्हन्त, जिन, केवली को 'अलमस्तु' कहते हैं । 'अलमस्तु' का अर्थ है-'पूर्ण' । जिन्होंने प्राप्त करने योग्य सब ज्ञानादि गुण प्राप्त कर लिये हैं । जिनके लिए प्राप्त करने योग्य कुछ भी अवशेष नहीं रहा है, वे 'अलमस्तु' अर्थात् 'पूर्ण' कहलाते अन्त में गौतम स्वामी ने कहा कि-'सेवं भंते ! सेवं भंते !' अर्थात्-हे भगवन् ! आप पूर्णज्ञानी हैं, अतएव आपका कथन सत्य है । आपके कथन में किसी प्रकार की शंका नहीं है। ॥ प्रथम शतक का चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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