SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. ४ छद्मस्थादि की मुवित समयं जाव-अंत करेंसु ? .. १६१ उतर-हंता, सिझिसु, जाव-अंतं करेंसु, एते तिन्नि आलावगा भाणियव्वा छमत्थस्स जहा, नवरं-सिझिसु सिज्झन्ति, सिज्झिस्संति। १६१ प्रश्न-से णूणं भंते! अतीतं, अणंत, सासयं समयं; पडुप्पण्णं वा सासयं; समयं अणागयं अणंतं वा सासयं समयं जे केइ अंतकरा वा, अंतिमसरीरिया वा, सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा; सव्वे ते उप्पण्णणाण-दंसणधरा, अरहा, जिणा, केवली भवित्ता, तओ पच्छा सिज्झन्ति, जाव-अंतं करेस्संति वा ? - १६२ उत्तर-हंता गोयमा ! अतीतं, अणंतं, सासयं जाव अंतं करेस्संति वा। ___१६३ प्रश्न-से णूणं भंते ! उप्पण्णणाण-दंसणधरे, अरहा, जिणे केवली, 'अलमत्यु त्ति वत्तव्वं सिया ? १६३ उत्तर-हंता, गोयमा ! उप्पण्णणाण-दंसणधरे, अरहा, जिणे, केवली 'अलमत्थु त्ति वत्तव्वं सिया । सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति । चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो॥ विशेष शब्दों के अर्थ-पवयणमाईहि-प्रवचन माता के द्वारा, सिमिसु-सिद्ध हुए, बुमिसु-बुद्ध हुए, आहोहिओ-आधोवधिक, परमाहोहिओ-परमाधोवधिक, अलमत्थु-पूर्ण । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy