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________________ २१६ भगवती सूत्र-श. १ उ. ४ छद्मस्थादि की मुक्ति छद्मस्थादि को मुक्ति १५९ प्रश्न-उमत्थे णं भंते ! मणुस्से अतीतं, अणंत, सासयं समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेणं, केवलाहिं पवयणमाईहिं सिझिसु, बुझिसु, जाव-सव्वदुक्खाणं अंत करिंसु ? १५९ उत्तर-गोयमा ! णो इणटे समटे । १६० प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-तं चेव जाव-अंतं करेंसु ? १६० उत्तर-गोयमा ! जे केइ अंतकरा अंतिमसरीरिया वा सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा, करेंति वा, करिस्मेति वा सव्वे ते उप्पण्णणाण-दंसणधरा, अरहा, जिणा, केवली भवित्ता, तओ पच्छा सिझंति, बुझंति, मुच्चंति, परिणिव्वायंति, सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा; से तेणटेणं गोयमा ! जावसव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु, पडुप्पन्ने वि एवं चेव, नवरं-'सिझंति' भाणियव्वं, अणागए वि एवं चेव, नवरं-'सिन्झिस्संति' भाणियव्वं । जहा मत्थो तहा आहोहिओ वि, तहा परमाहोहिओ वि; तिष्णि तिण्णि आलावगा भाणियव्वा । १६१ प्रश्न केवली णं भंते ! मणूसे अतीतं, अणंतं, सासयं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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