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________________ भगवती सूत्र-श. १. उ. ४ कर्मक्षय से मोक्ष का प्रकरण है। इसलिए मोहोपशम सम्बन्धी बात बताई गई है। आगे प्रश्न किया गया है कि-अपक्रमण आत्मा द्वारा होता है या अनात्मा द्वारा, अर्थात् दूसरों के द्वारा होता है ? इसका उत्तर दिया गया कि अपक्रमण आत्मा द्वारा ही होता है, अनात्मा द्वारा नहीं। मिथ्यात्व मोहनीय या चारित्रमोहनीय को वेदता हुआ जीव (अर्थात् जिस के मोहनीय कर्म उदय में आया हुआ है ऐसा संयत जीव) पहले पण्डितरुचि होकर फिर मिश्ररुचि या मिथ्यात्वरुचि हो जाता है । इसमें आत्मा ही कारण है, दूसरा कारण नहीं है। . फिर गौतम स्वामी ने पूछा कि-हे भगवन् ! मोहनीय कर्म को वेदते हुए जीव के अपक्रमण किस प्रकार होता है ? भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! अपक्रमण होने मे पहले वह जीव, जीवादि नौ पदार्थों को मानता था, उन पर श्रद्धा रखता था और यह भी मानता था कि धर्म का मूल. अहिंसा है। जिनेन्द्र भगवान् ने जैसा तत्त्व प्रतिपादन किया है, वह वैसा ही है । इस प्रकार धर्म के प्रति उसकी रुचि और श्रद्धा थी। किंतु अब उसे पहले रुचने वाली बातें अरुचिकर लगती है । जब उसे जिनधर्म की बातें रुचती थीं तब वह सम्यग्दृष्टि था । जब नहीं रुचती है, तो उसका कारणं मिथ्यात्व मोहनीय कर्म का वेदन है । इस अरुचि के फलस्वरूप मिथ्यात्व मोहनीय कर्म वेदता है । और ऊपर के गुणस्थानों से गिर जाता है। कर्मक्षय से मोक्ष १५४ प्रश्न-से णूणं भंते ! नेरइयम्स वा; तिरिक्खजोणियम्स वा, मणूसस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि तस्स अवेइयत्ता मोक्खो ? __१५४ उतर-हंता, गोयमा ! नेरइयस्स वा, तिरिक्ख-मणुदेवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि तस्स अवेइयत्ता मोक्खो। ... १५५ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ नेरइयस्स वा जाव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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