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भगवती सूत्र-श. १ उ. ३ नैरयिकादि और श्रमणों के कांक्षा-मोहनीय
णिज कम्मं वेएंति ?
१४३ उत्तर-हंता अस्थि ।
१४४ प्रश्न-कह णं भंते ! समणा णिग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति ?.
१४४ उत्तर-गोयमा ! तेहिं तेहिं कारणेहिं नाणंतरेहि, दंसणंतरेहि, चरितंतरेहि, लिंगंतरेहि, पवयणंतरेहि, पावयणंतरेहि, कप्पं. तरेहिं, मग्गंतरेहि, मयंतरेहि, भंगंतरेहि, णयंतरेहि, नियमंतरेहि, पमाणंतरेहिं संकिया, कंखिया, वितिगिच्छिया, भेयसमावन्ना, कलुससमावन्ना एवं खलु समणा णिग्गंथा कंखामोहणिज कम्मं वेइति ।
१४५ प्रश्न-से गुणं भंते ! तमेव सच्चं, मीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं ? . १४५ उत्तर-हंता, गोयमा ! तमेव सच्चं, णीसंकं, एवं जावपुरिसकारपरकमेइ वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति।.
. ॥ तइओ उद्देसो सम्मत्तो॥ विशेष शब्दों के अर्थ--तक्का--तर्क, सणा-संज्ञा, पण्णा--प्रज्ञा, मणे--मन, , बई--वचन, समणा णिग्गंथा--श्रमण निम्रन्थ ।
भावार्थ-१३९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नैरयिक जीव कांक्षामोहनीय कर्म वेदते हैं ? • १३९ उत्तर-हां, गौतम ! वेदते हैं। जैसे सामान्य जीव कहे, वैसे ही
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