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________________ १८४ भगबती सूत्र-श. १ उ. ३.कांक्षा-मोहनीय की उदीरणा आत्मा से ही उसका संवर करता है। १३२ उत्तर-हां, गौतम ! जीव अपनी आत्मा से ही उदीरणा, गर्दा और संवर करता है। १३३ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव अपनी आत्मा से ही उदीरणा, गर्दा और संवर करता है तो क्या उदीर्ण ( उदय में आये हुए) को उदीरणा करता है ? अनुदीर्ण (उदय में नहीं आये हुए)को उदीरणा करता है ? या अनुदीर्ण उदीरणाभविक (उदय में नहीं आया हुआ किन्तु उदीरणा के योग्य) को उदीरणा करता है ? या उदयानन्तर पश्चात् कृत कर्म को उदीरणा करता है ? . १३३ उत्तर-हे गौतम ! उदीर्ण की उदीरणा नहीं करता, अनुदीर्ण की भी उदीरणा नहीं करता, तथा उदयानन्तर पश्चात्कृत को भी उदीरणा नहीं करता, किन्तु अनुदीर्ण उदीरणा-भविक कर्म की उदीरणा करता है। १३४ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव अनुदीर्ण उदीरणा-भविक की उदीरणा करता है, तो क्या उत्थान से, कर्म से, बल से, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम से उदीरणा करता है ? या अनुत्थान से, अकर्म से, अबल से, अवीर्य से और अपुरुषकार पराक्रम से उदीरणा करता है? १३४ उत्तर-हे गौतम ! अनुदीर्ण उदीरणा-भविक कर्म को उदोरणा उत्थान से, कर्म से, बल से, वीर्य से और पुरुषकार पराक्रम से करता है, किन्तु अनुत्थान से, अकर्म से, अबल से, अवीर्य से और अपुरुषकार पराक्रम से उदीरणा नहीं करता है। इसलिए उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम हैं। १३५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वह अपनी आत्मा से ही उपशम, गर्हा, और संवर करता है ? १३५ उत्तर-हाँ,गौतम ! यहां भी उसी प्रकार 'पूर्ववत्' कहना चाहिए। विशेषता यह है कि अनुदीर्ण (उदय में नहीं आये हुए) का उपशम करता है। शेष तीन विकल्पों का निषेध करना चाहिए। १३६ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव अनुदीर्ण कर्म का उपशम करता है, तो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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