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________________ भगवती सूत्र - श. १ उ. ३ कांक्षा- मोहनीय की उदीरणा परकमेह वा । १३५ प्रश्न - से णूणं भंते ! अप्पणा चेव उवसामेइ, अप्पणा चैव गरहह, अप्पणा चैव संवरेइ ? १३५ उत्तर - हंता, गोयमा ! एत्थ वि तहेव भाणियव्वं । नवरं - अणुदिण्ण उवसामेइ सेसा पडिसेहेयव्वा तिष्णि । १८३ १३६ प्रश्न - जं तं भंते ! अणुदिण्णं उवसामेह तं किं उड्डाणेणं ? १३६ उत्तर - जाव - पुरिमकारपरकमेह वा । १३७ प्रश्न - से णूणं भंते ! अप्पणा चेव वेदेह, अप्पणा चेव गरहइ ? १३७ उत्तर - एत्थ वि सच्चेव परिवाडी, नवरं - उदिष्णं वेएह, णो अणुदिष्णं वेएइ, एवं जाव - पुरिसकारपरक मेड़ वा ? -१३८ प्रश्न - से पूर्ण भंते ! अप्पणा चेव निज्जरेह, अप्पणा चेव गरहइ ? १३८ उत्तर - एत्थ वि सच्चेव परिवाडी, नवरं - उदयानंतरपच्छाकडं कम्मं निज्जरेह, एवं जाव - परकमेइ वा । विशेष शब्दों के अर्थ - उदीरेह - उदीरणा करता है, गरहइ गर्हा करता है, संवरइसंवृत करता है, उदीरणा भवियं-उदीरणा के योग्य, उदयानंतरपच्छाकडं -- उदयानन्तर पश्चात् कृत, उवसामेइ- उपशान्त करता है, परिवाडी - परिपाटी । Jain Education International भावार्थ - १३२ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या जीव अपनी आत्मा से ही उदीरणा करता है ? अपनी आत्मा से ही उसकी गर्हा करता है ? और अपनी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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