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________________ १७४ भगवती सूत्र-श. १ उ. ३ अस्तित्व नास्तित्व १२१ उत्तर-हाँ, गौतम ! अस्तित्व, अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व नास्तित्व में परिणत होता है। १२२ प्रश्न-हे भगवन् ! अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व नास्तित्व में परिणत होता है, सो क्या वह प्रयोग से अर्थात् जीव के व्यापार से या स्वभाव से परिणत होता है ? १२२ उत्तर-हे गौतम ! प्रयोग से और स्वभाव से, दोनों तरह से परिणत होता है। १२३ प्रश्न-हे भगवन् ! जैसे आपके मत में अस्तित्व, अस्तित्व में परिणत होता है तो क्या उसी प्रकार नास्तित्व, नास्तित्व में परिणत होता है ? और जैसे आपके मत में नास्तित्व, नास्तित्व में परिणत होता है, तो क्या उसी प्रकार अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है ? १२३ उत्तर-हां, गौतम ! जैसे मेरे मत में अस्तित्व, अस्तित्व में परिणत होता है, उसी प्रकार नास्तित्व, नास्तित्व में परिणत होता है और जिस प्रकार मेरे मत में नास्तित्व, नास्तित्व में परिणत होता है, उसी प्रकार अस्तित्व, अस्तित्व में परिणत होता है। १२४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या अस्तित्व, अस्तित्व में गमनीय है ? .. १२४ उत्तर-हे गौतम ! जैसे 'परिणत' पद के आलापक कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ 'गमनीय' पद के साथ भी दो आलापक कहना चाहिए । यावत् मेरे मत में अस्तित्व, अस्तित्व में गमनीय है। १२५ प्रश्न-हे भगवन् ! जैसे आपके मत में (स्वात्मा में) गमनीय है, क्या उसी प्रकार परात्मा में भी गमनीय है ? हे भगवन् ! जैसे आपके मत में 'अन्नगमनीय है उसी प्रकार 'इह गमनीय' भी है ? . १२५ उत्तर-हाँ, गौतम ! जैसे मेरे मत में अन्न गमनीय है यावत् उसी प्रकार 'इह गमनीय' भी है। विवेचन-वस्तु का विद्यमान होना अस्तित्व कहलाता है और विद्यमान न होना 'नास्तित्व, कहलाता है। गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि हे भगवन् ! जो वस्तु है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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