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________________ • भगवती सूत्र-श. १ उ. २ उपपात १५७ किल्विषिक-किल्विष का अर्थ है-पाप । जो पापी हो उसे किल्विषिक कहते हैं। किल्विषिक व्यवहार से चारित्रवान् होते हैं, किन्तु ज्ञान आदि का अवर्णवाद करने के कारण किल्विषिक कहलाते हैं । कहा भी है: णाणस्स केवलोणं धम्मायरियस्स सव्वसाहूर्ण । माई अवग्णवाई, किम्विसियं भावणं कुणइ ।। अर्थात्-ज्ञान, केवलज्ञानी, धर्माचार्य और सब साधुओं का अवर्णवाद करने वाला एवं पापमय भावना रखने वाला किल्विषिक कहलाता है। ऐसा किल्विषिक साधु देवों में जावे तो उत्कृष्ट लान्तक कल्प तक उत्पन्न हो कसता है । तिर्यञ्च:-- गाय घोड़ा आदि देवलोक में जावे तो उत्कृष्ट सहस्रार कल्प में उत्पन्न हो सकते हैं। ___ आजीविक-एक खास तरह के पाखण्डी आजीविक कहलाते हैं या गौशालक के नग्न रहने वाले शिष्य अथवा लब्धि प्रयोग करके अविवेकी लोगों द्वारा ख्याति एवं महिमा, पूजा आदि प्राप्त करने के लिए तप और चारित्र का अनुष्ठान करने वाले और अविवेकी लोगों में चमत्कार दिखला कर अपनी आजीविका उपार्जन करने वाले-आजीविक कहलाते हैं । ये आजीविक यदि देवलोक में उत्पन्न हों, तो अच्युतकल्प तक उत्पन्न होते हैं। - आभियोगिक-विद्या और मन्त्र आदि के द्वारा दूसरों को अपने वश में करना-अभियोग कहलाता है । अभियोग दो प्रकार का है-द्रव्य अभियोग और भाव अभियोग । द्रव्य से चूर्ण आदि का योग बताना-द्रव्याभियोग और मन्त्र आदि बताकर वश में करना-भावाभियोग है । जो व्यवहार से तो संयम का पालन करता है, किन्तु मंत्र आदि के द्वारा दूसरे को अपने अधीन बनाता है, उसे आभियोगिक कहते हैं ।आभियोगिक का लक्षण बताते हुए कहा है कोऊय भूइकम्मे पसिणापसिणे निमित्तमाजीवी। इद्धि-रस-साय-गलओ, अहिओगं भावणं कुणा ॥ अर्थात्-जो सौभाग्य आदि के लिए स्नान बतलाता है, भूतिकर्म (रोगी को भभूत देने का काम) करता है, प्रश्नाप्रश्न अर्थात् प्रश्न का फल, स्वप्न का फल बताकर तथा • टीका में-'देशविरति' विशेपण दिया है, किन्तु बिना देशविरति वाले तिपंच भी बाठवें देवलोक तक जा सकते हैं । यह बात भगवती सूत्र चौबीसवें शतक के बीसवें उद्देशक के जघन्य उत्कृष्ट सम्म तथा इसी शतक के चौबीसवें उद्देशक के उत्कृष्ट अषम्य गम्मे से स्पष्ट होती है। . .. - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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