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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. २ असुरकुमारादि में समाहारादि १२७ + + इसके पश्चात् गौतमस्वामी ने यह प्रश्न किया कि-हे भगवन् ! क्या सब नारकी जीव समान आयु वाले और एक साथ उत्पन्न हुए हैं ? भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! ऐसा नहीं है, क्योंकि इस विषय में नारकी जीवों में चार भंग हैं । यथा(१) समायुष्क समोपपन्नक-समान-साथ में आयुष्य के उदय वाले अर्थात् एक समय में जन्मे हुए और समोपपन्नक-एक साथ परभव में उत्पन्न होने वाले अर्थात् यहाँ से साथ मर कर कर एक साथ पर भव में जाने वाले समायुष्क समोपपन्नक कहलाते हैं । (२) समायुष्क विषमोपपन्न क-साथ में आयुष्य के उदय वाले अर्थात् एक समय में उत्पन्न हुए और विषमोपपन्नक-अलग अलग समय में परभव में उत्पन्न होने वाले अर्थात् यहाँ से भिन्न भिन्न समयों में मर कर परभव में जाने वाले समायुष्क विषमोपपन्नक कहलाते हैं । (२) विषमायुष्क समोपपत्रक-जो अलग-अलग समय में उत्पन्न होने वाले हैं पर साथ में ही परभव में जाने वाले हैं । (४) विषमायुष्क विषमोपपन्नक-जो अलग अलग समय में उत्पन्न होने वाले हैं और अलग अलग समय में ही परभव में जाने वाले हैं। - इस प्रकरण में पहले नारकी जीवों के दो भेद किये, फिर तीन भेद किये और फिर चार भेद किये । ये सब अपेक्षाकृत भेद हैं, अतः विरोध की कोई संभावना नहीं हैं। असुरकुमारादि में समाहारादि __८३ प्रश्न-असुरकुमारा णं भंते ! सव्वे समाहारा, समसरीरा ? ८३ उत्तर-जहा नेरइया तहा भाणियव्वा, नवरं कम्म-वण्णलेस्साओ परिवण्णेयव्वाओ-पुन्वोववण्णगा महाकम्मतरागा, अविसुद्धवण्णतरागा, अविसुद्धलेसतरागा । पच्छोववण्णगा पसत्था, सेसं तहेव । एवं जाव-थणियकुमाराणं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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