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________________ ११६ भगवती सूत्र-श. १ उ. २ नैरयिक सम्बन्धी विचार हैं, थोडे पुद्गलों को उच्छ्वास रूप से ग्रहण करते हैं, थोडे पुद्गलों को निःश्वास रूप से छोड़ते हैं । कदाचित् आहार करते हैं, कदाचित् परिणमाते हैं, कदाचित् उच्छ्वास लेते हैं और निःश्वास छोड़ते हैं। इसलिये हे गौतम ! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि-सब नारको जीव समान आहार वाले, समान शरीर बाल और समान उच्छ्वास निःश्वास वाले नहीं है। विवेचन-श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं कि-हे भगवन् ! नैरयिक जीव दुःख में पड़े हुए हैं-क्या उन सब का आहार समान है ? क्या वे सब समान शरीर वाले हैं, ? क्या . वे समान उच्छ्वास निःश्वास वाले हैं ? ___ इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया-नहीं, गौतम ! ऐसी बात नहीं है। सब नरयिकों का आहार आदि समान नहीं है.। तब गौतम स्वामी ने फिर प्रश्न किया-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? सब नैरयिकों का आहार आदि समान क्यों नहीं है ? भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! नैरयिक जीव दो प्रकार के हैं-महाशरीर वाले और अल्प शरीर वाले । उनके शरीर में भिन्नता होने के कारण उनके आहारादि में भी भिन्नता है। यहाँ बड़ा और छोटा शरीर अपेक्षाकृत है । छोटे की अपेक्षा कोई पदार्थ बड़ा कहलाता है और बड़े की अपेक्षा छोटा कहलाता है । नारकी जीवों के शरीर दो प्रकार के होते हैं-भवधारणीय ( मूल शरीर ) और उत्तरवैक्रिय ( अपनी इच्छानुसार बड़ा या छोटा बनाया हुआ शरीर) । नारकी जीवों का भवधारणीय शरीर छोटे से छोटा अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना होता है और बड़े से बड़ा पांच सौ धनुष परिमाण होता हैं। उत्तर वैक्रिय शरीर छोटे से छोटा अंगुल के संख्यातवें भाग तक हो सकता है, इससे अधिक छोटा नहीं हो सकता है । इसी प्रकार बड़े से बड़ा एक हजार धनुष का हो सकता है, इससे ज्यादा बड़ा नहीं हो सकता। गौतम स्वामी ने जो प्रश्न किया है उसमें पहले आहार की बात पूछी है, उसके बाद शरीर की बात पूछी है, किन्तु भगवान् ने पहले शरीर के सम्बन्ध में कथन किया है। इस व्यतिक्रम (उल्टा क्रम) का कारण यह है कि शरीर का परिमाण बताये बिना आहार आदि की बात ठीक रूप से और सरलता से समझ में नहीं आ सकती। शरीर का परिमाण बता देने पर आहार, श्वासोच्छ्वास आदि की बात ठीक तरह से और सरलता पूर्वक समझ में आ सकती है। इस कारण से शरीर सम्बन्धी प्रश्न बाद में पूछने पर भी उत्तर पहले दिया गया है और आहार सम्बन्धी प्रश्न पहले पूछने पर भी उत्तर पीछे दिया गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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