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________________ भगवती सूत्र श. १ उ. २ नैरयिक सम्बन्धी विचार रेति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं उस्ससंति, अभिक्खणं नीससंति । तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए पोग्गले उस्ससंति, अप्पतराए पोग्गले नीससंति: आहच आहारेंति, आहच्च परिणामेंति, आहच्च उत्ससंति, आहच्च नीससंति से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुचड़ - 'नेरइया सव्वे जो समाहारा, नो सव्वे समसरीरा, नो सव्वे समुस्सासनीसासा' । विशेष शब्दों के अर्थ- समाहारा - समान आहार वाले, समसरीरा - समान शरीर वाले, समुस्सासनीसासा - समान उच्छ्वास निःश्वास वाले, इणट्ठे- यह अर्थ, समट्ठे- समर्थ, अभिक्खणं - बारम्बार, आहच्च - कदाचित् । ११५ भावार्थ - ६९ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या सभी नारकी जीव समान आहार वाले, समान शरीर वाले, तथा समान उच्छ्वास निःश्वास वाले हैं ? ६९ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् ऐसी बात नहीं है । ७० प्रश्न - हे भगवन् ! आप इस प्रकार किस कारण से कहते हैं किसभी नारको जीव समान आहार वाले, समान शरीर वाले और समान उच्छवास निःश्वास वाले नहीं हैं ? Jain Education International ७० उत्तर-हे गौतम ! नारकी जीव दो प्रकार के कहे गये हैं- महाशरीरी अर्थात् बडे शरीर वाले और अल्प शरीरी अर्थात् छोटे शरीर वाले । इन में जो बड़े शरीर वाले हैं वे बहुत पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुत पुद्गलों को परिणमाते हैं, बहुत पुद्गलों को उच्छ्वास रूप से ग्रहण करते हैं और बहुत पुद्गलों को निःश्वास रूप से छोड़ते हैं । बारबार आहार करते हैं, बारबार परि माते हैं, बारबार उच्छ्वास लेते हैं और निःश्वास छोड़ते हैं । उनमें जो छोटे शरीर वाले हैं, वे थोडे पुद्गलों का आहार करते हैं, थोडे पुद्गलों को परिणमाते For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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