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________________ भगवती सूत्र - १ उ. १ असंयत जीव की गति सेवं भंते - हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, त्ति - ऐसा कह कर, भगवं गोयमेभगवान् गौतम स्वामी, समगं भगवं महावीरं - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को, बंदर णमंसइ – वन्दना नमस्कार करते हैं, वंदित्ता णमंसित्ता - वन्दना नमस्कार करके, संजमेण तवसा - संयम और तप से, अप्पाणं - अपनी आत्मा को, भावेमाणे – भावित करते हुए, विहरह - विचरते हैं । भावार्थ - ६० प्रश्न - हे भगवन् ! असंयत, अविरत और पापकर्म का हनन तथा त्याग न करने वाला जीव इस लोक से चंव कर-मर कर क्या परलोक में देव होता है ? ६० उत्तर - हे गौतम ! कोई एक जीव देव होता है और कोई जीव देव नहीं होता है । १०५ ६१ प्रश्न - हे भगवन् ! इस लोक से चव कर परलोक में कोई जीव देव होता है और कोई जीव देव नहीं होता, इसका क्या कारण हैं ? ६१ उत्तर - हे गौतम ! जो जीव ग्राम, आकर, नगर निगम, राजधानी खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, सन्निवेश आदि स्थानों में अकाम तृषा से, अकाम क्षुधा से, अकाम ब्रह्मचर्य से, अकाम शीत आतप तथा डोस मच्छरों के काटने के दुःख को सहन करने से, अकाम अस्नान, पसीना, जल्ल मैल तथा पङ्क - कीचड़ से होने वाले परिवाह से थोडे समय तक या बहुत समय तक अपनी आत्मा को क्लेशित करते हैं, अपनी आत्मा को क्लेशित करके मृत्यु के समय मर कर वाणव्यन्तर देवलोकों के किसी देवलोक में देव रूप से उत्पन्न होते हैं । .६२ प्रश्न - हे भगवन् ! उन वाणव्यन्तर देवों के देवलोक किस प्रकार के कहे गये हैं ? ६२ उत्तर - हे गौतम! जैसे इस मनुष्यलोक में सदा फूला हुआ, मयूरित - पुष्प विशेष वाला - -मौर वाला, लवकित - कोंपलों वाला, फूलों के गुच्छों वाला, लता समूह वाला, पत्तों के गुच्छों वाला, यमल - समान श्रेणी के वृक्षों वाला, युगल वृक्षों वाला, फल फूल के भार से झुका हुआ, फल फूल के भार से झुकने की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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