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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. १ असंयत जीव की गति पण्णता । से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुचइ-जीवेणं असंजए जाव देवे सिया। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। ॥ पढमे सए पढमो उद्देसो समतो॥ शम्दार्थ-भंते-हे भगवन् ! असंजए-असंयत, अविरइए-अविरत और, अप्पम्हिय. पच्चक्खायपावकम्मे-पाप कर्म का हनन तथा त्याग न करने वाला, जीवे-जीव, इमो-इस लोक से, चुए-चव कर = मर कर, पेच्चा-परलोक में, देवे-देव, सिया-होता है ? .: ' गोयमा-हे गौतम ! अत्थेगइए-कोई एक जीव, देवे-देव, सिया-होता है, अत्येगइए -कोई जीव, देवे-देव, णो सिया-नहीं होता है। __-से केणठेणं-किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि, इओ-इस लोक से, चुए-चव कर, पेच्चा-पर लोक में, अत्थेगइए-कोई जीव, देवे-देव, सिया-होता है और, अत्यगइएकोई जीव, णो सिया-नहीं होता है ? - जे-जो, इमे जीवा-ये जीव, गामागरणगरणिगमरायहाणीखेडकम्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमसग्णिवेसेसु-गांव, आकर, नगर, निगम, राजधानी, खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टण, आश्रम तथा सन्निवेश आदि स्थानों में, अकामतव्हाए-अकाम तृषा से, अकामछुहाएअकाम क्षुधा से, अकामबंमचेरवासेणं-अकाम ब्रह्मचर्य से, अकामसीतातवदंसमसग-अकाम शीत, आतप तथा डांस मच्छरों के काटने के दुःख को सहन करने से, अकामअण्हाणग सेयजल्लमलपंकपरिवाहेणं-अकाम अस्नान, पसीना, जल्ल, मैल तथा पङ्क-कीचड़ से होने वाले परिदाह से, अप्पतरं वा भुज्जतरं वा कालं-थोड़े समय तक या बहुत समय तक, अप्पाणंअपनी आत्मा को, परिकिलेस्संति-क्लेशित करते हैं, अप्पाणं परिकिलेस्सित्ता-अपनी आत्मा को क्लेशित करके, कालमासे कालं किच्चा-मृत्यु के समय मर कर, वाणमंतरेसुदेवलोगेसु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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