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________________ १०२ भगवती सूत्र - श. १ उ. १ असंयत जीव की गति तण्हाए अकामछुहाए अकामबंभचेरवासेणं अकामसीता-तव- दंसमसग - अकाम अव्हाण - सेयजल्ल-मल-पंक- परिदाहेणं अप्पतरं वा भुज्जतरं वा कालं अप्पाणं परिकिलेस्संति अप्पाणं परिकिलेस्सित्ता कालमा से कालं किवा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । ६२ प्रश्न - केरिसा णं भंते ! तेसिं वाणमंतराणं देवाणं देवलोया पण्णत्ता ? ६२ उत्तर - गोयमा ! से जहाणामए इह मणुस्सलोगम्मि असोगवणे इवा, सत्तवण्णवणे इ वा, चंपयवणे इ वा, चूयवणे इ वा, तिलगवणे इ वा, लाउवणे इ वा, णिग्गोहवणे इ वा छत्तोहवणे इ वा, असणवणे इवा, सणवणे इ वा, अयसिवणे इ वा, कुसुंभवणे इ वा, सिद्धत्थवणे इ वा, बंधुजीवगवणे इ वा, णिच्चं कुसुमिय माइय-लवइय-थवइय - गुलुइय - गोच्छय जमलिय - जुवलिय - विणमिय- पणमिय सुविभत्तपिंडिमंजरिवडेंसगधरे सिरीए अईव अईव उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्ठ, एवामेव तेसिं वाणमंतराणं देवाणं देवलोगा जहण्णेणं दसवाससहस्सट्टिइएहिं उक्कोसेणं पलिओ मट्टिइएहिं बहूहिं वाणमंत रेहिं देवेहिं तद्देवीहि य आइण्णा विकिण्णा उवत्थडा संथा फुडा अवगाढगाढा सिरीए अईव अईव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिठ्ठति । एरिसगा णं गोयमा ! तेसिं च वाणमंतराणं देवानं देवलोया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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