________________
८८
भगवती सूत्र-श. १ उ. १ आत्मारंभ परारंभ आदि का वर्णन
___ सारांश यह है कि शुभयोग वाला प्रमत्त संयत-अनारम्भी है और अशुभयोग वाला आत्मारम्भी आदि है, अनारम्भी नहीं है। जैसे कि ईर्यासमिति में ध्यान रख कर गमन करते हुए मुनि द्वारा किसी जीव की विराधना हो जाने पर भी (द्रव्य हिंसा हो जाने पर भी) वह अनारम्भी है । __४९ प्रश्न-णेरइया णं भंते ! किं आयारंभा, परारंभा, तदुभयारंभा, अणारंभा ? | ___ ४९ उत्तर-गोयमा ! णेरइया आयारंभा वि, जाव णो अणारंभा। ____५० प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ ?
५० उत्तर-गोयमा ! अविरइं पडुच्च, से तेणटेणं, जाव णो अणारंभा, एवं जाव असुरकुमारा वि । जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिया ।
५१-मणुस्सा जहा जीवा, णवरं सिद्ध विरहिया भाणियव्वा । ५२-चाणमंतरा जाव वेमाणिया, जहा गेरइया ।
५३-सलेस्सा जहा ओहिया । कण्हलेसस्स णीललेसस्स काउलेसस्स जहा ओहिया जीवा, णवरं पमत्त-अप्पमत्ता ण भाणियव्वा । तेउलेसस्स, पम्हलेसस्स, सुकलेसस्स जहा ओहिया जीवा, णवरं सिद्धा ण भाणियव्वा ।
शब्दार्थ-भंते-हे भगवन् ! णेरइया-नरयिक जीव, कि-क्या, आयारंभा-आत्मारम्भी हैं, परारंभा-परारम्भी हैं, तदुभयारंभा-तदुभयारम्भी हैं या, अणारंभा-अनारम्भी है ?
गोयमा-हे गौतम ! जेरइया-नरयिक जीव, आयारंभा वि जाव णो अणारंभाआत्मारम्भी भी हैं, परारम्भी भी हैं और तदुभयारम्भी भी हैं, किन्तु अनारम्भी नहीं हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org